प्रेरक कहानियां : Prerak Kahaniya | बंदर और मगरमच्छ |
प्रेरक कहानियां : Prerak Kahaniya | बंदर और मगरमच्छ | Apeksha Mazumdar
नदी किनारे एक जामुन का पेड़ था। उस पेड़ पर एक बंदर रहता था। नदी में एक मगरमच्छ रहता था। एक दिन बंदर और मगरमच्छ में दोस्ती हो गई।
बंदर मगरमच्छ को मीठे-मीठे जामुन खिलाता और मगरमच्छ उसे किस्से कहानियां सुनाता।
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिए भी ले गया।
जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी बोली, ‘‘जामुन इतने मीठे है तब बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा। मुझे बंदर का कलेजा चाहिए।’’
मगरमच्छ अपनी पत्नी की बात कैसे टाल सकता था। वह बंदर का कलेजा लेने के लिए बंदर के पास गया।
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मगरमच्छ खुश होते हुए बोला, ‘‘तुमने जो जामुन दिए थे उसे खाकर मेरी पत्नी बहुत खुश हुई। उसने तुम्हें घर पर दावत पर बुलाया हैं।’’
मगरमच्छ की बात सुनकर बंदर बहुत खुश हुआ और मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर उसके घर जाने के लिए तैयार हो गया।
मगरमच्छ बंदर को लेकर जाने लगा। वह मन ही मन खुश हो रहा था कि बंदर को देखकर उसकी पत्नी बहुत खुश होगी।
मगरमच्छ ने बंदर से कहा, ‘‘तुम्हें पता हैं मेरी पत्नी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है। इसीलिए मैं तुम्हें अपने साथ लेकर जा रहा हूं।’’
मगरमच्छ की बात सुनकर बंदर डर गया। उसने सोचा, ‘मैंने मगरमच्छ पर विश्वास करके अच्छा नहीं किया। अब क्या करू।’ वह बचने के उपाय सोचने लगा।
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बंदर मगरमच्छ से बोला, ‘‘अरे, यह बात तो मुझे पहले बताना चाहिए था। कलेजा तो मैं पेड़ पर ही रख आया हूं। तुम्हें कलेजा चाहिए तो वापस किनारे पर चलो हम कलेजा लेकर आएगें।’’
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मगरमच्छ बंदर की बातों में आ गया। वह उसे लेकर जैसे ही नदी के किनारे पर पहुंचा, बंदर तुरंत पेड़ पर चढ़ गया। उसने कहा, ‘‘दोस्त, बंदरांे का कलेजा पेड़ पर नहीं उनके शरीर में ही होता हैं। आज से तुम्हारी और मेरी दोस्ती खत्म।’’
उस दिन से मगरमच्छ और बंदर एक दूसरे से दूर-दूर रहने लगे।
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सहनशीलता
राजा राममोहन राय स्वभाव से उदार और सहनशील थे। वे एक समाजसुधारक थे। उन्होंने सतीप्रथा का विरोध किया था और लोगों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया।एक बार उनके दो मित्रों ने उनकी परिक्षा लेने की सोची। उन्होंने एक व्यक्ति के हाथों पत्र देकर भेंजवाया कि उनके बड़े पुत्र का निधन हो गया हैं।
जब वह व्यक्ति पत्र लेकर राजा राममोहन राय के पास पहुंचा, वे दोनों उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए वहीं थे।
राजा राममोहन राय ने वह पत्र पड़ा और उसे एक तरफ रख दिया। उनके चेहरे पर स्वाभिकरूप से पुत्र शौक की वेदना दिखाई दी। लेकिन उन्होंने तुरंत उसे अपने चेहरे से मिटा दिया। उन्होंने एक गहरी सांस ली और पूर्ण अपने काम में लग गये।
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राजा राममोहन राय की यह मनोदशा देखकर उनके दोनों मित्रों को अपने किए पर बहुत पक्षतावा हुआ। उन्होंने राजा राममोहन राय से अपने किए की माफी मांगी। उनकी बातें सुनकर भी राजा राममोहन राय को उन पर क्रोध नहीं आया। वे पूर्ववत अपना कार्य करते रहे।
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झूठी प्रशंसा
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आम के पेड़ पर कहीं से एक कौआ आकर बैठा। उसके मुंह में रोटी का टुकड़ा था।
कौआ के मुंह में रोटी का टुकड़ा देखकर नीचे बैठे सियार के मुंह में पानी आ गया। उसने कहा, ‘‘कौआ भाई, तुम तो बहुत मीठा सुर में गाना गाती हो। मुझे भी एक गाना सुनाओ न।’’
कौआ सियार की झूठी प्रशंसा में आ गया। उसने जैसे ही गाना गाने के लिए अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया।
सियार ने झट से रोटी उठाई और खा गया।
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