Moral Stories in Hindi : inspirational story for students in hindi |
Moral Stories in Hindi : inspirational story for students in hindi | सुनहरा पक्षी Apeksha Mazumdar
एक गांव में एक व्यापारी रहता था। उसका एक बेटा था दीपेश। दीपेश बहुत आलसी था। अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने अपना सारा कारोबार नौकरों के भरोसे छोड़ दिया था।
धीरे-धीरे उसका व्यापार मंदा होने लगा। आलस्य के कारण उसकी सेहत भी खराब होने लगी। एक दिन उसका बचपन का मित्र उससे मिलने आया।
दीपेश ने अपनी बीमारी के बारे में अपने मित्र को बताया।
मित्र ने कहां, ‘‘तुम्हारी बीमारी दूर हो सकती हैं, लेकिन उसके लिए तुम्हें सुबह जल्दी उठना पड़ेगा।’’
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दीपेश बोला, ‘‘हां, मैं सुबह जल्दी उठने के लिए तैयार हूं।’’
मित्र बोला, ‘‘सुबह नदी किनारे या खेतों के आसपास सुनहरे रंग की एक चिड़िया आती हैं। यदि तुमने उसे देख लिया तो तुम्हारी तबीयत बिल्कुल ठीक हो जाएगी।’’
दीपेश अगले दिन सुबह उठकर नदी किनारे गया। वहां से चलता-चलता वह अपने खेत में पहुंचा। वहां उसने देखा, नौकर खेत से सब्जियां तोड़कर अपने घर ले जा रहा है। दीपेश को वहां देखकर वह घबरा गया। उसने जल्दी से सारा सामान दीपेश के घर पर पहुंचा दिया।
अगले दिन दीपेश फिर सुनहरी चिड़िया की खोज में घर से निकला। दीपेश ने देखा, उसका ग्वाला गाय का दूध निकालने के बाद दूध का बर्तन अपने घर की ओर ले जा रहा है। यह देखकर दीपेश ने ग्वाले को डांटा और दूध घर पहुंचाने के लिए कहा।
इसी तरह प्रतिदिन व्यापारी सुबह उठकर सुनहरी चिड़िया को ढुढ़ने जाता। उसे चिड़िया तो दिखाई नहीं देती लेकिन अपने नौकरों की चोरी जरूर पकड़ लेता।
दीपेश के रोज सुबह आने से नौकर भी सचेत हो गए। उन्होंने चोरी करना बंद कर दिया और ठीक से काम करने लगे।
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दीपेश के घर पर दूध, सब्जियां व अनाज भी पहले से अधिक पहुंचने लगा। उसका अनाज का गोदाम फिर से भर गया और उसका व्यापार भी अच्छा चलने लगा।
एक दिन दीपेश का मित्र उसका हालचाल पूछने आया तो दीपेश ने सुनहरे पक्षी के बारे में पूछा।
मित्र बोला, ‘‘आलस्य की वजह से तुम्हारा व्यापार नष्ट हो रहा था, तुम अस्वस्थ भी रहने लगे थे। सुनहरे पक्षी को देखने के लिए तुम सुबह जल्दी उठने लगे और तुम्हारा आलस्य दूर हो गया। तुम स्वस्थ भी हो गए और व्यापार भी अच्छा चलने लगा। तुम्हारी उन्नति और अच्छा स्वास्थ्य ही सुनहरी चिड़िया है।’’
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मूर्ख बंदर
एक जगह पर कुछ कारीगर लकड़ी को चीरने का काम कर रहे थे। दोपहर का समय हो गया तो सभी अपना-अपना काम बीच में ही छोड़कर खाना खाने चले गए।
तभी वहां बंदरों का एक झुण्ड आ गया। उनमें से एक बंदर बहुत ही शरारती था। उसकी नजर चीरा लगाने वाले लटठे पर पड़ी। वह उसके ऊपर चढ़ गया और उसमें फंसे लोहे की मोटी कील को जोर-जोर से हिलाने लगा।
यह देखकर बंदरों के मुखिया ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘उस कील को मत हिलाओ।’’
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शरारती बंदर ने अनसुना कर दिया। उसे कील हिलाने में मजा आ रहा था।
यह देखकर उसके दूसरे साथी भी उसे मना करने लगे, लेकिन वह और जोर-जोर से उस कील को पकड़ कर हिलाने लगा।
अचानक कील लकड़ी के बीच से निकल गई और बंदर का पैर उसमें फंस गया।उसने मन ही मन सेाचा, ‘यदि मैं अपने बड़ों की बातों को मान लेता जो इस मुसीबत में नहीं फंसता।’ उसने वहां से निकलने की कोशिश की लेकिन नहीं निकल पाया। वह दर्द से छटपटाने लगा। उसके शरीर पर इतनी गहरी चोट आई की वह थोड़ी देर में ही मर गया।
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