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बहुत पुरानी बात है। एक बरगद का पेड़ था। उस पेड़ में एक कौवा और कौवी रहते थे। दोनों आपस में बात-बात पर लड़ते-झगड़ते थे। कौवा को कौवी का कोई काम पसंद नहीं आता था। वह हमेशा कौवी के कामों में गलतियां ढुढ़ा करता था। 

कौवी भी उससे दो कदम आगे थी। वह भी अपनी गलतियों को सुधारने की बजाय कौवे के कहने पर तुरन्त उससे बहस करने लगती थी। कभी-कभी बहस इतनी बढ़ जाती कि बात दोनों की हाथा पाई तक पहुंच जाती थी।

उनके रोज-रोज के लड़ाई झगड़े की वजह से बरगद के पेड़ पर रहने वाले दूसरे पक्षियां बहुत परेशान थे। यदि कोई उन्हें समझाने की कोशिश करता तो वह उसी से लड़ पड़ते थे। उनके व्यवहार से दुखी और नाराज पक्षियों ने उनसे बोलना बंद कर दिया, लेकिन इससे भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा।


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एक दिन उस पेड़ पर हंसो का एक जोड़ा आकर रहने लगा। हंस और हंसिनी दोनों आपस में एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे। उनमें कभी तू-तू, मैं-मैं नहीं होती थी। 

उन के आपसी प्रेम को देखकर पेड़ पर रहने वाले दुसरे पक्षी आपस में कहते, ‘एक तरफ हंस का परिवार देखों, दोनों एक दुसरे से कितना प्यार करते है। कभी इनमें झगड़ा नहीं होता है। दुसरी ओर इन कौवों को देखों, जहां प्यार तो दूर की बात है। उनमें सुख शांति का नामोनिशान तक नहीं है। उनके कारण यहां कितनी अशांति छाई रहती हैं।

एक दिन सुबह कौवा और कौवी में जोरो का झगड़ा हुआ। कौवा नाराज होकर नाश्ता किए बगैर काम पर चला गया। कौवी का गुस्सा जब शांत हुआ तो उसे ध्यान आया कि कौवा ने तो आज नाश्ता ही नहीं किया है और न ही लंच बाक्स लेकर गया है। 

कौवे का मनीबैग भी घर पर छुट गया था, यह देखकर वह उदास हो गयी। वह दरवाजे पर बैठ कर उस के लौटने का इंतजार करने लगी।

कौवी को उदास देखकर हंसिनी उसके पास आकर बोली, ‘‘बहन, क्या बात है? तुम उदास क्यों बैठी हो?’’


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कौवी बोली, ‘‘बहन, क्या बताऊ तुम्हें, मेरी तो किस्तम ही फुटी है। कौवा हमेशा लड़ता-झगड़ता है। तुम दोनों आपस में कितने प्यार से रहते हो।’’

हंसिनी मुस्कराते हुए बोली, ‘‘यह सब वशीकरण मोती का चमत्कार है। उसके चमत्कार से आज तक हम दोनों में कभी झगड़ा नहीं हुआ है।’’




कौवी ने मन ही मन सोचा, ‘यह मोती मुझे मिल जाए तो मैं कौवा को अपने वश मेें कर लूंगी। फिर मैं जैसा बोलूगी, कौवा वैसा ही करेगा। उसने कहा, ‘‘बहन, क्या तुम मुझे वह मोती दोगी?’’

‘‘हां, क्यों नही। यदि तुम चाहो तो इसे अपने पास रख सकती हो, लेकिन इस मोती का प्रयोग बहुत सावधानीपूर्वक करना होगा। क्या तुम कर पाओगी?’’ हंसिनी ने कहा।

‘‘हां, तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूगी।’’


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हंसिनी मोती देकर कौवी को समझाते हुए बोली, ‘‘यह मोती बहुत प्रभावशाली है। इसे हमेशा अपने पास रखना। इसके प्रभाव से कौवा तुम्हारे वश में हो जायेंगा। जैसे ही कौवा सामने आए इसे अपने मुंह में रख लेना। कौवा कुछ भी कहेें तुम चुप रहना। उसे कुछ नहीं कहना। यदि तुमने कुछ कहा तो मोती का प्रभाव उल्टा होने लगेगा। मोती के विपरित प्रभाव की वजह से तुम्हारी मृत्यु हो सकती है।’’

कौवी, कौवा को अपने वश में करने का कोई भी मौका नहीं खोना चाहती थी। उसने कहा, ‘‘तुमने जैसा कहा हैं, मैं वैसा ही करने के लिए तैयार हूं। कौवा को अपने वश में करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं।’’

हंसिनी ने एक बार फिर याद दिलाते हुए कहां, ‘‘बहन, याद रखना इसे मुंह में रखकर कुछ नहीं बोलना।’’



कौवा के घर लौटते ही कौवी ने मोती को अपने मुंह में रख लिया। दिनभर का भूखा-प्यासा कौवा घर को अस्त-व्यस्त देखकर कौवी को डांटने लगा। कौवी चुपचाप चाय नाश्ता बनाकर ले आयी। कौवी के जबाव न देने पर कौवा भी चुप हो गया।

कौवी मन ही मन प्रसन्न होते हुए बोली, ‘अरे वाह, यह तो बहुत चमत्कारी मोती है। इसके मुंह में रखते ही कौवा की बोलती बंद हो गयी। ऐसे चुप हो गया मानो मुंह में जवान ही नहीं है।


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कई दिनों तक ऐसा ही होता रहा। कौवा, कौवी पर गुस्सा होता, उसे डांटता। फिर भी कौवी उससे कुछ नहीं कहती। शुरू-शुरू में कौवी को कौवा पर बहुत गुस्सा आता था, लेकिन वह डर के मारे चुप रहती थी कि कहीं उसके कुछ कहने से मोती का प्रभाव उल्टा न हो जाएं।

कौवी के चुप रहने से अब कौवे ने भी उसे कुछ कहना छोड़ दिया। कौवे की टोका-टाकी बंद हो जाने से कौवी भी मन लगाकर घर के कामकाज करने लगी। 

कौवे ने सोचा, मैं कौवी को कितना डांटता हूं, लेकिन वह पलट कर कोई जवाब नहीं देती है। मेरी ही गलती है जो उसके कामों में कमियां ढुढ़ता रहता हूं। सारा दिन कोल्हू के बेल की तरह काम करते करते वह थक जाती है। कौवी को दिन भर काम करने देख कौवा भी समय मिलने पर उसके कामों में मदद करने लगा।



एक दिन कौवी हंसिनी के पास आकर बोली, ‘‘बहन, तुम्हारा दिया हुआ मोती तो बहुत चमत्कारी है। उसके प्रभाव से कौवा अब मेरे वश में हो गया है। आज कल उसने मुझ से लड़ाई करना बंद कर दिया है, अब उल्टा घर केे कामों में भी मेरी मदद करने लगा है।’’

‘‘बहन यह कोई वशीकरण मोती नहीं है, बल्कि एक साधारण मोती हैं.’’ हंसिनी ने कहा।

‘‘यह तुम क्या कह रही हो?’’ कौवी ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘हां, मैं सच कह रही हूं, जो कुछ हुआ है वह तुम्हारे चुप रहने की वजह से हुआ है। जब दोनों में  झगड़ा हो तो एक के चुप रहने से झगड़ा अपने आप शांत हो जाता है। तुम्हारे साथ भी यही हुआ है। कौवा के लड़ने पर जब तुम ने पलट कर कोई जबाव नहीं दिया तो उसका गुस्सा अपने आप शांत हो जाता था।


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‘‘लेकिन तुम ने ऐसा क्यों कहा कि मोती मुंह में रख कर कुछ कहा तो इसका विपरित प्रभाव से मृत्यु हो जाएगी।’’

‘‘तुम्हारे कुछ कहने से मोती गले में फंस जाती और तुम्हारी मृत्यु हो सकती थी। अपनी मृत्यु के डर से तुम चुप रही।’’ हंसिनी की बात सुनकर कौवी उसे आश्चर्य से देखने लगी। 

हंसिनी समझाते हुए बोली, ‘‘बहन, तू-तू, मैं-मैं किस घर में नहीं होती है। जहां चार बर्तन होते है, वहां आवाज तो आती है। सभी के सोचने, समझने का ढंग अलग होता है, उनके विचारों में भी मतभेद होता है, उनकी पसंद-नापसंद में भी भिन्नता होती हैं....।

समझदारी उसी में है कि हम दोनों के बीच के रास्ते को अपनाए। इससे मन मुटाव उत्पन्न नहीं होता है। झगड़े की शुरूआत तभी होती है जब दोनों एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। यदि एक चुप रहे तो झगड़े की शुरूआत ही नहीं होगी। मौन रहकर भी हम बहुत कुछ कह सकते है।’’

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हंसिनी की बात सुनकर कौवी को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने हंसिनी को मोती लौटाते हुए कहां, ‘‘मुझे अब इसकी जरूरत नहीं हैं, क्योंकि मुझे झगड़े की वजह का पता चल गया है। मैं वादा करती हूं कि भविष्य में कभी कौवे से झगड़ा नहीं कंरूगी।’’


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शिक्षा:-  moral stories in hindi | real life inspiring stories that touched heart | चुप्पी का चमत्कार


इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि 

  •  कभी भी किसी से बेवजह का झंगड़ा नहीं करना चाहिए। 
  •  झगड़े के समय यदि एक चुप रहे तो सामने वाला कुछ समय बाद अपने आप ही शांत हो जाता हैं।   
  •  यदि झगड़े के समय सामने वाले व्यक्ति की  गलती है तब भी स्वयं को चुप रहना चाहिए। क्योंकि गुस्से में व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है। ऐसे में उसे नहीं समझाया जा सकता हैं।
  •  आपके चुप रहने पर सामने वाला व्यक्ति भी कुछ ही समय में अपने आप ही चुप हो जाएगा। जब उसका गुस्सा शांत हो जाएगा तो उसे स्वयं अपनी गलती का भी एहसास हो जाएगा।

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