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सुलतान महमूद के पास बहुत से गुलाम थे, लेकिन सुलतान उन सभी गुलामों में अयाज नाम के गुलाम को सबसे ज्यादा चाहते थे। 

एक दिन एक सरदार ने सुलतान से पूछ ही लिया, ‘‘हुजूर, गुस्ताखी माफ हो तो एक सवाल पूछूं।’’

सुलतान की अनुमति मिलने पर सरदार बोला, ‘‘आपके पास एक से बढ़कर एक गुलाम हैं। सभी आपकी सेवा भी खूब करते है। उसके बावजूद आप अयाज को ही सबसे ज्यादा क्यों चाहते हैं।’’

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सुलतान ने अयाज को अपने पास बुलाया और कीमती मोती का हार देते हुए बोले, ‘‘अयाज इसे तोड़ दो।’’

गुलाम अयाज ने हार तोड़ दिया। यह देखकर वहां उपस्थित सभी दरबारी घबरा गए। उन्होंने सोचा, हुक्म को मानने से पहले उसे एक बार तो सोचना चाहिए था। अब अयाज को फांसी की सजा मिलेगी, जो उसने सुलतान का इतना किमती हार तोड़ दिया। 


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सुलतान ने गुस्से से कहा, ‘‘तुमने इतना कीमती हार तोड़ दिया।’’

अयाज ने दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘‘गुलाम से गलती हो गई, माफ कर दीजिए।’’

सुलतान ने पूछा, ‘‘जब तुमने हार तोड़ा, तुम्हंे डर नहीं लगा।’’

अयाज बोला, ‘‘मालिक, इसमें डर कैसा। मैं जानता हूं आप काफी सोच विचार के बाद ही कोई हुक्म देते हैं।’’


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सुलतान ने मुस्करा कर सरदार से कहा, ‘‘अब समझ में आया कि मैं अयाज को क्यों चाहता हूं। अयाज कह सकता था कि मैंने आदेश दिया था इसलिए तोड़ दिया,  इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने अपनी गलती मानी और इसके लिए माफी भी मांगी। उसकी वफादारी और ईमानदारी की वजह से मैं उसे दूसरों से अधिक चाहता हूं।’’


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सत्य की जीत


एक दिन बुद्धिराज नाम का एक व्यक्ति राजा से मिलने गया। राजा उसकी बातों से प्रसन्न होकर उसे एक सुंदर व तेज दौड़ने वाला घोड़ा उपहार में दे दिया।

बुद्धिराज घोड़े को लेकर अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ते में एक ठग की निगाह घोड़े पर पड़ी। उसने उस घोड़े को चुराने का विचार किया।


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ठग बुद्धिराज के पास आकर बोला, ‘‘यह घोड़ा तो बहुत सुंदर है।’’ कहते हुए घोड़े की लगाम अपने हाथ में लेकर जाने लगा।

यह देखकर बुद्धिराज चिल्लाने लगा। शोर सुनकर आसपास भीड़ जमा हो गइ।

बुद्धिराज ने कहा, ‘‘यह व्यक्ति मेरा घोड़ा लेकर जा रहा है।’’

ठग ने कहा, ‘‘मैं अपना घोड़ा लेकर जा रहा हूं, देखों लगाम भी मेरे हाथ में हैं।’’

बुद्धिराज बोला, ‘‘यह घोड़ा मुंझे राजा ने उपहार में दिया हैं।’’



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ठग बोला, ‘‘यह घोड़ा मैं अभी-अभी खरीद कर ला रहा हूं।’’

बुद्धिराज समझ गया कि यह ठग ऐसे नहीं मानेगा। उसने घोड़े की आंखों पर कपड़ा बांध दिया। उसने ठग से पूछा, ‘‘घोड़ा तुम्हारा हैं तो बताओ उसकी कौन सी आंख कानी हैं।’’

ठग ने झट से जवाब दिया, ‘‘दाई वाली।’’

सुना भाईयों यह घोड़े की दाई आंख कानी बता रहा है।’’

ठग जल्दी से बोला, ‘‘नहीं... नहीं इसकी बाई आंख कानी हैं।’’

बुद्धिराज ने कहा, ‘‘घोड़े की कोई भी आंख कानी नहीं है। आप सभी गौर से देख लें।’’ कहते हुए बुद्धिराज ने घोड़े की आंखो से कपड़ा खोल दिया।



ठग अपनी जान बचाकर वहा से भाग गया।बुद्धिराज ने अपनी बुद्धि से घोड़े को लुटने से बचा लिया।

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