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लघुकथा : मर्यादा Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar

Laghu Katha



लघुकथा : मर्यादा Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar


लघुकथा : मर्यादा Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar, ‘मर्यादा’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।




मर्यादा


सारा गांव रात की अंधेरी मोटी परत में निश्चितं सोया था। जाग रहा था तो सिर्फ वह। चारपायी पर मैली गुदड़ी में लेटा कितना आराम महसूस करता था कल तक। आज लगने लगा, उसके बेटे ने दहकते शोलों में समाधी लगा दी हो। कितने गुण गाया करते थे जाति बिरादरी के लोग, ‘‘बेटा हो तो कलुवा जैसा .... लोगों के सामने छाती हाथों चैड़ी हो जाती। अपना पेट काटा, हल से लग गया.... उसकी मां परायी देहरी पर हाॅफती रही ... तब कहीं पढ़ने शहर भेंज सका। ..... जाते समय कितना रो रहा था, ‘‘बाबूजी .... माई आप के वैगर वहा मन कैसे लगेगा.... यहां आपका भी कुछ हाथ बटा दिया करता था। ..... कितना समझाने के बाद वह गया शहर ... वहीं आज मेरे सामने सर उठा कर कहें, ‘‘मैं नीच जाति की लड़की से शादी कर रहा हूं.....।’’

चारपायी से उठकर वह पागलों की भांति घुमने लगा। अब क्या जवाब देगा चैतू की बेटी कम्मो को, बहू बनाकर लाने का वचन दिया था। बिरादरी वाले खिल्ली उड़ायेगे, हां .... हां .... देखों कलुवा दो आखर क्या पढ़ लिया, अपनी जाति को छोड़ नीच जाति की लड़की से ब्याह कर रहा है। नहीं ....वह ऐसा नहीं होने देगा। पसीने से तरबतर वह खाट से उठा। फूंस की बनी छत से खौंसी हंसिया निकाल, पास खाट पर लेटे कलुवा का गला हंसिया से लगा कर एक ही वार में अलग कर पागलों की भांति हंसने लगा,‘‘मैंने ....मैंने अपने जाति की मर्यादा भंग होने से बचा लिया।’’........... More                     (1982)



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