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लघुकथा : कीमत Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar, ‘कीमत ’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।
गांव के डाक्टर से लगातार सात दिन दवाई करवाई, कोई फायदा नहीं हुआ। दर्द महाजन के सूद की तरह बढ़ता रहा।
शहर के एक बड़े डाक्टर के दवाखाने पर घण्टों खड़े रहने के बाद आखिर नम्बर आ ही गया। गौर से चेकअप करने के बाद ..... डाक्टर ने दवाई तैयार कर उसकी ओर बढ़ा दी। खाने का तरीका भी बता दिया।
‘‘कितने हुए डाक्टर?’’
‘‘बीस रूपये ....।’’ डाक्टर ने कहा।
उसने बीस रूपये निकाल कर दे दिये।
बाहर आकर मन ही मन सोचने लगा, गांव में दो सौ रूपये की दवा करा चुका है कोई लाभ नहीं हुआ। यहां सिर्फ बीस रूपये की दवाई में क्या फायदा होगा। उसे विश्वास न आया .... दवाई पास बहते नाली में फेंक दी। ...... दुसरे डाक्टर की दुकान खोजने लगा।............. More (1985)
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लघुकथा : कीमत Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar
लघुकथा : कीमत Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar, ‘कीमत ’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।
कीमत
गांव के डाक्टर से लगातार सात दिन दवाई करवाई, कोई फायदा नहीं हुआ। दर्द महाजन के सूद की तरह बढ़ता रहा।
शहर के एक बड़े डाक्टर के दवाखाने पर घण्टों खड़े रहने के बाद आखिर नम्बर आ ही गया। गौर से चेकअप करने के बाद ..... डाक्टर ने दवाई तैयार कर उसकी ओर बढ़ा दी। खाने का तरीका भी बता दिया।
‘‘कितने हुए डाक्टर?’’
‘‘बीस रूपये ....।’’ डाक्टर ने कहा।
उसने बीस रूपये निकाल कर दे दिये।
बाहर आकर मन ही मन सोचने लगा, गांव में दो सौ रूपये की दवा करा चुका है कोई लाभ नहीं हुआ। यहां सिर्फ बीस रूपये की दवाई में क्या फायदा होगा। उसे विश्वास न आया .... दवाई पास बहते नाली में फेंक दी। ...... दुसरे डाक्टर की दुकान खोजने लगा।............. More (1985)
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