लघुकथा : अपने-पराए Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar - Prerak kahani | Hindi Stories

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लघुकथा : अपने-पराए Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar

Laghu Katha
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लघुकथा : अपने-पराए  Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar


लघुकथा : अपने-पराए  Laghu Katha || Dr. M.K. Mazumdar, ‘अपने-पराए’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।




अपने-पराए (Apne Paraye)


‘‘मामा जी, मां की तबियत बहुत खराब हैं ......। कुछ रूपयों की मदद हो जाती तो .....।’’

‘‘बबलू इधर मैं काफी परेशान हूं .....। हाथ काफी तंग हैं .........।’’ मामा ने कहा।

जीजा, काका, मौसा, फूफा ...... सभी अपनों से मांग कर परेशान हो चुका था। अन्त में परेशान हालत में अपने पुराने मित्र के पास पहुंचा।

‘‘....... मां की तबियत बहुत खराब है। मुझे कुछ .....।’’ आगे बालने में हिचकिचा रहा था।

‘‘मुझे कुछ रूपयों की जरूरत है।’’ मित्र ने वाक्य पूरा किया।

‘‘हां .......।’’

‘‘ बोल, कितने चाहिए .......?’’

‘‘यही सौ एक रूपये मिल जाते .......।’’

‘‘बुद्धु, सौ में क्या होगा, यह पांच सौ रूपये लें। जा और जरूरत पड़े तो कहना। परेशानी में अपनों से नहीं तो क्या पराये से मांगेगा।’’

हथेली पर रखे रूपयों को देखकर मैं अपने-पराये में तुलना कर रहा था।........... More (1979)




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