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Motivational Story In Hindi लालच का फल, सतपुड़ावन में ब्लैकी नाम का एक भालू रहता था. उसकी किराने की एक दुकान थी. वन में दुसरी ओर कोई दुकान न होने के कारण सभी जानवर उसकी दुकान में सामान खरीदने आते थे.
लेकिन कुछ दिन पहले जैकी सियार ने ब्लैकी भालू के दुकान के सामने एक नई दुकान खोली. जहां वह कम से कम कीमत पर सामान बेचने लगा.
कम कीमत होने के कारण वन के सभी जानवर जैकी की दुकान से सामान खरीदने लगे. इसी वजह से ब्लैकी की दुकान में जानवरों का आना कम हो गया.
दुकान ठीक से न चलने की वजह से ब्लैकी परेशान हो गया.
एक दिन की बात है. वह अपने दुकान में बैठा ग्राहकों के आने का इंतजार कर रहा था. तभी उसकी दुकान पर गप्पू भेड़िया आया.
ब्लैकी को उदास देखकर गप्पू ने कहां, ‘‘बहुत दुखी हो .....तुम्हारे माथे की रेखाएं बता रही है तू कई दिनों से काफी परेशान हो.’’
गप्पू की बातों से ब्लैकी प्रभावित हो गया. उसने गप्पू को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘महाराज, आप तो अन्र्तयामी है. मेरे कुछ कहने के पहले ही आप सब कूछ जान गये. अंदर आकर कुछ जलपान कीजिए.’’
ब्लैकी, गप्पू को दुकान के अंदर ले आया. उसने गप्पू को बैठे के लिए आसन दिया और अपने नौकर रामू सियार को तुरंत चाय नाश्ते की व्यवस्था करने के लिए कहा.
पेट पूजा करके गप्पू ने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रशन्न हूं. तूमने मेरा मन जीत लिया है. मैं तुम्हारे सारे दुखों को दूर कर दूगां.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी उसके पैरों पर गिर पड़ा. उसने गप्पू के पैरों को पकड़ कर कहा, ‘‘महाराज, अब आप ही का सहारा है. मेरी परेशानियों को दूर कर दें. मैं जिंदगी भर आपकी सेवा करूगां.’’
‘‘तूम चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मदद जरूर करूगां. मेरे गुरू ने मुझे एक ऐसी विद्या सिखाई है, जिससे मैं रूपयांे की बरसात कर सकता हूं. जिससे तुम्हारी सारी समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन इसके लिए तुम्हें कुछ ....’’ गप्पू कहते हुए रूक गया.
‘‘महाराज, बताइए इसके लिए मुझे क्या करना होगा.’’ ब्लैकी ने पूछा.
‘‘तुम्हें कुछ रूपयों का इंतजाम करना होगा.’’
‘‘महाराज, इसके लिए कितने रूपये का इंतजाम करना पड़ेगा।’’
‘‘तुम जितने रूपये डबल करना चाहते हो, उतने रूपये ले आओ.’’
ब्लैकी ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास इस वक्त रूपये नहीं है. कुछ समय दे तो मैं रूपयों की व्यवस्था कर सकता हूं.’’
‘‘ठीक है कोई बात नहीं... शाम तक जितने ज्यादा से ज्यादा रूपयों की व्यवस्था कर सकते हो कर लेना और रूपये लेकर सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर पहंुच जाना। मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूगा।’’ इतना कह कर गप्पू वहां से चला गया.
गप्पू के जाने के बाद ब्लैकी भालू रूपये की व्यवस्था के लिए इधर-उधर भाग दौड़ करने में लगा. उसने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर पचास हजार रूपये लेकर शाम के समय सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर पहुंच गया. मंदिर के बाहर चंकी और बंटी नाम के दो सियार हाथ जोड़े खड़े थे.
ब्लैकी जैसे ही मंदिर के पास पहुंचा, बाहर खड़े चंकी ने उससे कहां, ‘‘तुम रूपये ले आएं?’’
‘‘हां...’’ ब्लैकी ने कहां.
‘‘रूपये हमें दे दो.’’ चंकी ने कहां.
‘‘लेकिन, महाराज कहां हैं.’’ ब्लैकी ने पूछा.
तभी गप्पू भेड़िया मंदिर से बाहर निकलकर आया. रूपये का बैग देखकर उसकी आंखे चमक उठी.
उसने आंखों के इशारे से चंकी और बंटी को रूपये का बैग ले लेने के लिए कहां और ब्लैकी को अपने साथ अंदर ले गया.
गप्पू ने कहां, ‘‘तुम सिर्फ पचास हजार रूपये ही लाएं....... इतने कम रूपये से क्या होगा, तुम्हें ज्यादा से ज्यादा रूपयें लाना चाहिए था. देखो ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी बोला, ‘‘महाराज, आप तो धन्य है. आपने कैसे जाना कि मेरे पास पचास हजार रूपयें हैं.’’
‘‘मुझे सब पता हैं, मुझसे कुछ नहीं छुपा है. मुझे तो यह भी मालूम है कि तुमने यह रूपयें अपनी पत्नी के जेवर बेच कर लाएं है. तुम्हें एक राज की बात और बताऊं.’’
‘‘बताइए महाराज....’’
‘‘मुझे तो यह भी पता है कि तुम्हारी पत्नी को मुझ पर बिलकुल विश्वास नहीं है.’’
‘‘क्षमा करें महाराज, वह मूर्ख है. उसकी इस मूर्खता की वजह से मैं काफी परेशान हो चुका हूं.’’ ब्लैकी ने कहा.
‘‘उसकी मुर्खता के लिए मैंने उसे माफ कर दिया है. मैंने तुम से वादा किया है कि तुम्हारी मदद करूगा. अभी थोड़ी देर में यज्ञ शुरू करता हूं. यज्ञ के समय अचानक रूपये की बरसात हो सकती है. लेकिन एक बात का ध्यान रखना यज्ञ शुरू होने और खत्म होने के बीच में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आनी चाहिए, वर्ना अनर्थ हो जाएगा. देवी मां नाराज हो जाएगी और रूपयों की बरसात होना रूक जाएगा.’’ गप्पू ने उसे समझाते हुए कहां.
गप्पू ने यज्ञ का कार्यक्रम आरम्भ किया. वह धीरे -धीरे कुछ बढ़बढ़ाता और वहां जलाये गये आग में कुछ डाल देता.
धीरे-धीरे मंदिर के अंदर इतना धुआं भर गया कि वहां साफ-साफ कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.
कुछ देर बाद ब्लैकी को लगा कि हवा में कुछ उड़ते हुए जमीन पर गिर रहा है. उसने अपने हाथों से आंखों को साफ किया और ध्यान से देखने लगा.
उसे हवा में तैरते हुये नोट दिए. वह रूपयों को हवा में तैरते हुये देख रहा था कि तभी उसके पास एक सांप आ गया. अचानक अपने पास सांप देखकर उसकी चीख निकल गई.
ब्लैकी की चीख सुन कर गप्पू नाराज हो गया. उसे क्रोधित देखकर चंकी और बंटी उसे शांत करने की कोशिश करने लगे.
ब्लैकी, गप्पू के पैर पकड़ कर बोला, ‘‘महाराज क्षमा कर दें. मैं नासमझ हूं. आपके समझाने पर भी मैंने यज्ञ मैं बाधा पहुंचाई है.’’
ब्लैकी के गिड़गिड़ाने पर गप्पू का गुस्सा शांत हो गया. उसने कहा, ‘‘ठीक है मैं तुम्हारे लिए एक बार फिर कोशिश करूगा.’’
ब्लैकी ने डरते हुए कहा, ‘‘महाराज मेरे पचास हजार रूपयों का क्या हुआ?’’
गप्पू ने आसपास पड़े नोटों को दिखाते हुए कहां, ‘‘वह तो यज्ञ में जल कर राख हो गए और उसके बदले में रूपयों की बरसात होने लगी. यह सारे रूपये तुम्हारे ही है. इन्हें उठाकर तुम अपने साथ ले जाओ.’’
ब्लैकी बिखरे पड़ें नोटों को समेटने लगा. जब उसने रूपये गिने तो वह केवल पांच हजार ही हुए थे. वह उदास हो गया.
ब्लैकी को उदास देखकर गप्पू बोला, ‘‘इस बार तुम ज्यादा से ज्यादा रूपयें ले आना. मैं उन्हें अपनी विद्या से डबल कर दूगां. तुम्हारी सभी परेशानियां दूर हो जाएगी. घर जाकर और रूपयों लेकर आओ.’’
गप्पू भेड़िए की बात सुनकर भोला भालू बोला, ‘‘महाराज मेरे पास तो और रूपयें नहीं है. रूपयों की व्यवस्था करने के लिए मुझे कुछ समय चाहिए.’’
गप्पू ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘ठीक है, दो दिन में रूपये लेकर आ जाना, क्योंकि दो दिन बाद हम यहां से चले जायेंगे.’’
ब्लैकी घर पहुंचा. उसका उदास चेहरा देखकर उसकी पत्नी भोली समझ गयी कि उसके पति को उन ठगों ने ठग लिया है.
भोली बोली, ‘‘देख लिया न लालच का फल. हकीकत में कभी पैसों की बरसात नहीं होती है. लेकिन तुम्हें तो मेरी बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था. अब भुगतों, जो थोड़े से जेवर थे वह भी तुमने गवां दिये.’’
‘‘अब बस भी कर, तब से न जाने क्या बक बक किये जा रही है. तुझे यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन मैंने अपनी आंखों से पैसों की बरसात होते हुए देखा है. यह ले पांच हजार रूपयें, अब तो यकीन हुआ न.’’
‘‘सिर्फ पांच हजार रूपयें, तुमने तो कहा था कि रूपए दुगुने हो जाएंगे। फिर पचास हजार के पांच हजार रूपयें ही क्यों?’’
पत्नी की बात सुनकर ब्लैकी ने उसे सारी बातें बता दी।
ब्लैकी की बातें सुनकर भोली को पूरा यकीन हो गया कि उन ठगो ने उसके पति को ठग लिया है. उसने ब्लैकी को समझाना चाहा लेकिन वह अपनी पत्नी की बात मानने के लिए तैयार नहीं था.
भोली समझ गयी कि ब्लैकी को समझाना बेकार है. वह चुप हो गयी और मन ही मन कुछ विचार करने लगी.
दो दिनों की भागदौड़ के बाद भोला ने अपना घर और दूकान गिरवी रखकर दस लाख रूपयों की व्यवस्था कर ली.
सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर गप्पू और उसके दोनों साथी ब्लैकी का इंतजार कर रहे थे. ब्लैकी को आता हुआ देखकर उनके चेहरे खिल उठे.
गप्पू ने ब्लैकी को समझाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे लिए आखरी मौका है. इसलिए अब की बार कोई गड़बड़ी मत करना. मैं अपनी विद्या का प्रयोेग सिर्फ दो बार ही कर सकता हूं, कोई गड़बड़ होने पर मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाऊगा. ’’
ब्लैकी ने मन ही मन किया कि इस बार कुछ भी हो जाएं वह रूपयों की बरसात पूरी तरह से थम जाने के बाद ही अपने स्थान से हिलेगा.
गप्पू द्वारा पूजा शुरू करते ही भोला अपनी आंखे बंद करके चुपचाप बैठ गया.
ब्लैकी को चुपचाप देखकर गप्पू बोला, ‘‘अनर्थ हो गया. देवी मां रूठ गयी. रूपये सब राख हो गए.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी के होश उड़ गए. उसने कहा, ‘‘लेकिन इस बार तो मैं अपनी जगह पर चुपचाप बैठा था.’’
‘‘देवी मां तुझसे नाराज हो गयी हैं, इसीलिए.’’ गप्पू ने नाराज होते हुए कहां.
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी उस पर बिगड़ते हुआ बोला, ‘‘तुमने मुझे धोखा दिया. रूपयें डबल करने के बहाने मेरे सारे रूपये चुरा लिए है. जल्दी से मेरे रूपयें वापस कर दो, नहीं तो अच्छा नहीं होगा.’’
ब्लैकी के बार-बार रूपयें मांगने पर गप्पू और उसके चेले चंकी और बंटी उसे मारने लगे. ब्लैकी की चीखने की आवाज सुनकर वहां पुलिस आ गयी.
पुलिस को देखकर गप्पू और उसके दोनों साथी अपना सामान लेकर वहां से भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. उनके सामानों की तलाशी लेने पर ब्लैकी द्वारा दिए गए सारे रूपयें मिल गये.
इस्पेक्टर गैंडामल ने कहां, ‘‘पुलिस को काफी दिनों से इन तीनों ठगों की तलाश थी। यह तीनों भोले-भाले जानवरों को नये-नये तरीके अपना कर मूर्ख बनाकर ठगते थे.
जब भोली ने थाने में पहंुच गप्पू के बारे में बताया तो मैं समझ गया कि गप्पू और उसके दोनों साथी ब्लैकी को रूपयें की बरसात करवाने के बहाने रूपयें ठगना चाहते हैं.
इन तीनों के साथ तुम्हारा नौकर रामू भी मिला हुआ है. रामू घर की सारी खबर गप्पू को देता रहता था.’’
गैंडामल की बातों को बीच में रोकते हुए ब्लैकी ने पूछा, ‘‘पैसों की बरसात कैसे करते होती थी.’’
‘‘वह सब भी एक नाटक था. वास्तव में गप्पू यज्ञ में जो सामग्री डालता था उससे कमरे में काफी छुआं हो जाता हैं. धुंए की वजह से वहां ठीक से कुुछ दिखाई ही नहीं देता था. इसके बाद चंकी और बंटी रूपयों को हवा में उड़ाने लगते थे.
तुमने ध्यान नहीं दिया है कि गप्पू केवल दो व पांच रूपयें के नोटों की ही बरसात करता था. वह दिखने में तो बहुत होते थे लेकिन गिनती में कम होते थे. हाथ के रूपयें समाप्त हो जाने पर सांप या बिच्छु फेंक देते थे. घबराहट में रबड़ के सांप को तुमने सही समझ लिया था.’’ गैंडामल ने उसे रबड़ के सांप व बिच्छु दिखाते हुए कहा.
गैंडामल ने ब्लैकी से कहां, ‘‘यह तो अच्छा हो गया तुम्हारी पत्नी भोली ने समय से हमें खबर कर दी नहीं तो यह तीनों तुम्हारे सारे रूपये लेकर फरार हो जाते.’’
गैंडामल ने समझाते हुए कहा, ‘‘यदि पूजा पाठ से ही रूपये की बरसात होती तो दुनिया में साधु-महात्मा हीे सबसे अमीर आदमी होते.’’
गैंडामल की बात सुनने के बाद ब्लैकी ने अपने कानों को पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब मैं कभी लालच नहीं कंरूगा.’’
Motivational Story In Hindi : लालच का फल
Motivational Story In Hindi लालच का फल, सतपुड़ावन में ब्लैकी नाम का एक भालू रहता था. उसकी किराने की एक दुकान थी. वन में दुसरी ओर कोई दुकान न होने के कारण सभी जानवर उसकी दुकान में सामान खरीदने आते थे.
लेकिन कुछ दिन पहले जैकी सियार ने ब्लैकी भालू के दुकान के सामने एक नई दुकान खोली. जहां वह कम से कम कीमत पर सामान बेचने लगा.
कम कीमत होने के कारण वन के सभी जानवर जैकी की दुकान से सामान खरीदने लगे. इसी वजह से ब्लैकी की दुकान में जानवरों का आना कम हो गया.
दुकान ठीक से न चलने की वजह से ब्लैकी परेशान हो गया.
एक दिन की बात है. वह अपने दुकान में बैठा ग्राहकों के आने का इंतजार कर रहा था. तभी उसकी दुकान पर गप्पू भेड़िया आया.
ब्लैकी को उदास देखकर गप्पू ने कहां, ‘‘बहुत दुखी हो .....तुम्हारे माथे की रेखाएं बता रही है तू कई दिनों से काफी परेशान हो.’’
गप्पू की बातों से ब्लैकी प्रभावित हो गया. उसने गप्पू को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘महाराज, आप तो अन्र्तयामी है. मेरे कुछ कहने के पहले ही आप सब कूछ जान गये. अंदर आकर कुछ जलपान कीजिए.’’
ब्लैकी, गप्पू को दुकान के अंदर ले आया. उसने गप्पू को बैठे के लिए आसन दिया और अपने नौकर रामू सियार को तुरंत चाय नाश्ते की व्यवस्था करने के लिए कहा.
पेट पूजा करके गप्पू ने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रशन्न हूं. तूमने मेरा मन जीत लिया है. मैं तुम्हारे सारे दुखों को दूर कर दूगां.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी उसके पैरों पर गिर पड़ा. उसने गप्पू के पैरों को पकड़ कर कहा, ‘‘महाराज, अब आप ही का सहारा है. मेरी परेशानियों को दूर कर दें. मैं जिंदगी भर आपकी सेवा करूगां.’’
‘‘तूम चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मदद जरूर करूगां. मेरे गुरू ने मुझे एक ऐसी विद्या सिखाई है, जिससे मैं रूपयांे की बरसात कर सकता हूं. जिससे तुम्हारी सारी समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन इसके लिए तुम्हें कुछ ....’’ गप्पू कहते हुए रूक गया.
‘‘महाराज, बताइए इसके लिए मुझे क्या करना होगा.’’ ब्लैकी ने पूछा.
‘‘तुम्हें कुछ रूपयों का इंतजाम करना होगा.’’
‘‘महाराज, इसके लिए कितने रूपये का इंतजाम करना पड़ेगा।’’
‘‘तुम जितने रूपये डबल करना चाहते हो, उतने रूपये ले आओ.’’
ब्लैकी ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास इस वक्त रूपये नहीं है. कुछ समय दे तो मैं रूपयों की व्यवस्था कर सकता हूं.’’
‘‘ठीक है कोई बात नहीं... शाम तक जितने ज्यादा से ज्यादा रूपयों की व्यवस्था कर सकते हो कर लेना और रूपये लेकर सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर पहंुच जाना। मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूगा।’’ इतना कह कर गप्पू वहां से चला गया.
गप्पू के जाने के बाद ब्लैकी भालू रूपये की व्यवस्था के लिए इधर-उधर भाग दौड़ करने में लगा. उसने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर पचास हजार रूपये लेकर शाम के समय सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर पहुंच गया. मंदिर के बाहर चंकी और बंटी नाम के दो सियार हाथ जोड़े खड़े थे.
ब्लैकी जैसे ही मंदिर के पास पहुंचा, बाहर खड़े चंकी ने उससे कहां, ‘‘तुम रूपये ले आएं?’’
‘‘हां...’’ ब्लैकी ने कहां.
‘‘रूपये हमें दे दो.’’ चंकी ने कहां.
‘‘लेकिन, महाराज कहां हैं.’’ ब्लैकी ने पूछा.
तभी गप्पू भेड़िया मंदिर से बाहर निकलकर आया. रूपये का बैग देखकर उसकी आंखे चमक उठी.
उसने आंखों के इशारे से चंकी और बंटी को रूपये का बैग ले लेने के लिए कहां और ब्लैकी को अपने साथ अंदर ले गया.
गप्पू ने कहां, ‘‘तुम सिर्फ पचास हजार रूपये ही लाएं....... इतने कम रूपये से क्या होगा, तुम्हें ज्यादा से ज्यादा रूपयें लाना चाहिए था. देखो ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी बोला, ‘‘महाराज, आप तो धन्य है. आपने कैसे जाना कि मेरे पास पचास हजार रूपयें हैं.’’
‘‘मुझे सब पता हैं, मुझसे कुछ नहीं छुपा है. मुझे तो यह भी मालूम है कि तुमने यह रूपयें अपनी पत्नी के जेवर बेच कर लाएं है. तुम्हें एक राज की बात और बताऊं.’’
‘‘बताइए महाराज....’’
‘‘मुझे तो यह भी पता है कि तुम्हारी पत्नी को मुझ पर बिलकुल विश्वास नहीं है.’’
‘‘क्षमा करें महाराज, वह मूर्ख है. उसकी इस मूर्खता की वजह से मैं काफी परेशान हो चुका हूं.’’ ब्लैकी ने कहा.
‘‘उसकी मुर्खता के लिए मैंने उसे माफ कर दिया है. मैंने तुम से वादा किया है कि तुम्हारी मदद करूगा. अभी थोड़ी देर में यज्ञ शुरू करता हूं. यज्ञ के समय अचानक रूपये की बरसात हो सकती है. लेकिन एक बात का ध्यान रखना यज्ञ शुरू होने और खत्म होने के बीच में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आनी चाहिए, वर्ना अनर्थ हो जाएगा. देवी मां नाराज हो जाएगी और रूपयों की बरसात होना रूक जाएगा.’’ गप्पू ने उसे समझाते हुए कहां.
गप्पू ने यज्ञ का कार्यक्रम आरम्भ किया. वह धीरे -धीरे कुछ बढ़बढ़ाता और वहां जलाये गये आग में कुछ डाल देता.
धीरे-धीरे मंदिर के अंदर इतना धुआं भर गया कि वहां साफ-साफ कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.
कुछ देर बाद ब्लैकी को लगा कि हवा में कुछ उड़ते हुए जमीन पर गिर रहा है. उसने अपने हाथों से आंखों को साफ किया और ध्यान से देखने लगा.
उसे हवा में तैरते हुये नोट दिए. वह रूपयों को हवा में तैरते हुये देख रहा था कि तभी उसके पास एक सांप आ गया. अचानक अपने पास सांप देखकर उसकी चीख निकल गई.
ब्लैकी की चीख सुन कर गप्पू नाराज हो गया. उसे क्रोधित देखकर चंकी और बंटी उसे शांत करने की कोशिश करने लगे.
ब्लैकी, गप्पू के पैर पकड़ कर बोला, ‘‘महाराज क्षमा कर दें. मैं नासमझ हूं. आपके समझाने पर भी मैंने यज्ञ मैं बाधा पहुंचाई है.’’
ब्लैकी के गिड़गिड़ाने पर गप्पू का गुस्सा शांत हो गया. उसने कहा, ‘‘ठीक है मैं तुम्हारे लिए एक बार फिर कोशिश करूगा.’’
ब्लैकी ने डरते हुए कहा, ‘‘महाराज मेरे पचास हजार रूपयों का क्या हुआ?’’
गप्पू ने आसपास पड़े नोटों को दिखाते हुए कहां, ‘‘वह तो यज्ञ में जल कर राख हो गए और उसके बदले में रूपयों की बरसात होने लगी. यह सारे रूपये तुम्हारे ही है. इन्हें उठाकर तुम अपने साथ ले जाओ.’’
ब्लैकी बिखरे पड़ें नोटों को समेटने लगा. जब उसने रूपये गिने तो वह केवल पांच हजार ही हुए थे. वह उदास हो गया.
ब्लैकी को उदास देखकर गप्पू बोला, ‘‘इस बार तुम ज्यादा से ज्यादा रूपयें ले आना. मैं उन्हें अपनी विद्या से डबल कर दूगां. तुम्हारी सभी परेशानियां दूर हो जाएगी. घर जाकर और रूपयों लेकर आओ.’’
गप्पू भेड़िए की बात सुनकर भोला भालू बोला, ‘‘महाराज मेरे पास तो और रूपयें नहीं है. रूपयों की व्यवस्था करने के लिए मुझे कुछ समय चाहिए.’’
गप्पू ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘ठीक है, दो दिन में रूपये लेकर आ जाना, क्योंकि दो दिन बाद हम यहां से चले जायेंगे.’’
ब्लैकी घर पहुंचा. उसका उदास चेहरा देखकर उसकी पत्नी भोली समझ गयी कि उसके पति को उन ठगों ने ठग लिया है.
भोली बोली, ‘‘देख लिया न लालच का फल. हकीकत में कभी पैसों की बरसात नहीं होती है. लेकिन तुम्हें तो मेरी बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था. अब भुगतों, जो थोड़े से जेवर थे वह भी तुमने गवां दिये.’’
‘‘अब बस भी कर, तब से न जाने क्या बक बक किये जा रही है. तुझे यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन मैंने अपनी आंखों से पैसों की बरसात होते हुए देखा है. यह ले पांच हजार रूपयें, अब तो यकीन हुआ न.’’
‘‘सिर्फ पांच हजार रूपयें, तुमने तो कहा था कि रूपए दुगुने हो जाएंगे। फिर पचास हजार के पांच हजार रूपयें ही क्यों?’’
पत्नी की बात सुनकर ब्लैकी ने उसे सारी बातें बता दी।
ब्लैकी की बातें सुनकर भोली को पूरा यकीन हो गया कि उन ठगो ने उसके पति को ठग लिया है. उसने ब्लैकी को समझाना चाहा लेकिन वह अपनी पत्नी की बात मानने के लिए तैयार नहीं था.
भोली समझ गयी कि ब्लैकी को समझाना बेकार है. वह चुप हो गयी और मन ही मन कुछ विचार करने लगी.
दो दिनों की भागदौड़ के बाद भोला ने अपना घर और दूकान गिरवी रखकर दस लाख रूपयों की व्यवस्था कर ली.
सतपुड़ा पर्वत के शिव मंदिर पर गप्पू और उसके दोनों साथी ब्लैकी का इंतजार कर रहे थे. ब्लैकी को आता हुआ देखकर उनके चेहरे खिल उठे.
गप्पू ने ब्लैकी को समझाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे लिए आखरी मौका है. इसलिए अब की बार कोई गड़बड़ी मत करना. मैं अपनी विद्या का प्रयोेग सिर्फ दो बार ही कर सकता हूं, कोई गड़बड़ होने पर मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाऊगा. ’’
ब्लैकी ने मन ही मन किया कि इस बार कुछ भी हो जाएं वह रूपयों की बरसात पूरी तरह से थम जाने के बाद ही अपने स्थान से हिलेगा.
गप्पू द्वारा पूजा शुरू करते ही भोला अपनी आंखे बंद करके चुपचाप बैठ गया.
ब्लैकी को चुपचाप देखकर गप्पू बोला, ‘‘अनर्थ हो गया. देवी मां रूठ गयी. रूपये सब राख हो गए.’’
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी के होश उड़ गए. उसने कहा, ‘‘लेकिन इस बार तो मैं अपनी जगह पर चुपचाप बैठा था.’’
‘‘देवी मां तुझसे नाराज हो गयी हैं, इसीलिए.’’ गप्पू ने नाराज होते हुए कहां.
गप्पू की बात सुनकर ब्लैकी उस पर बिगड़ते हुआ बोला, ‘‘तुमने मुझे धोखा दिया. रूपयें डबल करने के बहाने मेरे सारे रूपये चुरा लिए है. जल्दी से मेरे रूपयें वापस कर दो, नहीं तो अच्छा नहीं होगा.’’
ब्लैकी के बार-बार रूपयें मांगने पर गप्पू और उसके चेले चंकी और बंटी उसे मारने लगे. ब्लैकी की चीखने की आवाज सुनकर वहां पुलिस आ गयी.
पुलिस को देखकर गप्पू और उसके दोनों साथी अपना सामान लेकर वहां से भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. उनके सामानों की तलाशी लेने पर ब्लैकी द्वारा दिए गए सारे रूपयें मिल गये.
इस्पेक्टर गैंडामल ने कहां, ‘‘पुलिस को काफी दिनों से इन तीनों ठगों की तलाश थी। यह तीनों भोले-भाले जानवरों को नये-नये तरीके अपना कर मूर्ख बनाकर ठगते थे.
जब भोली ने थाने में पहंुच गप्पू के बारे में बताया तो मैं समझ गया कि गप्पू और उसके दोनों साथी ब्लैकी को रूपयें की बरसात करवाने के बहाने रूपयें ठगना चाहते हैं.
इन तीनों के साथ तुम्हारा नौकर रामू भी मिला हुआ है. रामू घर की सारी खबर गप्पू को देता रहता था.’’
गैंडामल की बातों को बीच में रोकते हुए ब्लैकी ने पूछा, ‘‘पैसों की बरसात कैसे करते होती थी.’’
‘‘वह सब भी एक नाटक था. वास्तव में गप्पू यज्ञ में जो सामग्री डालता था उससे कमरे में काफी छुआं हो जाता हैं. धुंए की वजह से वहां ठीक से कुुछ दिखाई ही नहीं देता था. इसके बाद चंकी और बंटी रूपयों को हवा में उड़ाने लगते थे.
तुमने ध्यान नहीं दिया है कि गप्पू केवल दो व पांच रूपयें के नोटों की ही बरसात करता था. वह दिखने में तो बहुत होते थे लेकिन गिनती में कम होते थे. हाथ के रूपयें समाप्त हो जाने पर सांप या बिच्छु फेंक देते थे. घबराहट में रबड़ के सांप को तुमने सही समझ लिया था.’’ गैंडामल ने उसे रबड़ के सांप व बिच्छु दिखाते हुए कहा.
गैंडामल ने ब्लैकी से कहां, ‘‘यह तो अच्छा हो गया तुम्हारी पत्नी भोली ने समय से हमें खबर कर दी नहीं तो यह तीनों तुम्हारे सारे रूपये लेकर फरार हो जाते.’’
गैंडामल ने समझाते हुए कहा, ‘‘यदि पूजा पाठ से ही रूपये की बरसात होती तो दुनिया में साधु-महात्मा हीे सबसे अमीर आदमी होते.’’
गैंडामल की बात सुनने के बाद ब्लैकी ने अपने कानों को पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब मैं कभी लालच नहीं कंरूगा.’’
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