Baccho ki Kahani : 5 Prerak Kahani | moral stories in hindi | Apeksha Mazumdar - Prerak kahani | Hindi Stories

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Baccho ki Kahani : 5 Prerak Kahani | moral stories in hindi | Apeksha Mazumdar

Baccho ki Kahani : 5 Prerak Kahani | moral stories in hindi | Apeksha Mazumdar
Baccho ki Kahani : 5 Prerak Kahani | moral stories in hindi | Apeksha Mazumdar 


5 Prerak Kahani | moral stories in hindi | Apeksha Mazumdar

अच्छे बुरे कर्म


एक गांव में एक वृद्ध किसान रहता था। एक दिन उसने अपनी सारी जिम्मेदारी अपने बेटे का सौंप दी। शुरू-शुरू में तो बेटे-बहु ने वृद्ध किसान की खूब सेवा की, लेकिन  धीरे-धीरे वे उससे उकता गए। 



बेटे ने अपने पिता की चारपाई एक छोटी सी कोठरी में डाल दी, जहां न हवा आती थी न रोशनी। खाना भी कोठरी में ही पहुंचा दिया जाता था। जूठे बर्तन न धोना पड़े इसके लिए मिट्टी के बर्तन पर खाना परोसने लगे। 


इस तरह कुछ ही दिनों में वृद्ध किसान की मृत्यु हो गई। वह अपने पिता के द्वारा इस्तेमाल चारपाई और बिस्तर आदि बाहर फैंकने जा रहा था कि उसके बेटे ने अपने पिता से कहा, ‘‘आप इन्हें क्यों फैंक रहे हैं। जब आप बूढ़े हो जाएगें तब यह सब आपके काम आएगा।’’




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बेटे की बात सुनकर उसके पिता की आंखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई। वह सोचने लगा, ‘मैंने जैसा व्यवहार अपने पिता के साथ किया है, यह भी बड़े होने पर मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगा।’ 



बच्चे, जैसा देखते है वैसा ही सीखते हैं। वे अपने माता-पिता के अच्छे बुरे सभी गुणों को अपनाते हैं। इसीलिए आप जैसा व्यवहार चाहते हैं, दुसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करें। 
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बुद्धिमान की परीक्षा


राजा को अपने यहां एक बुद्धिमान मंत्री की जरूरत थी। उन्होंने राज्य में घोषणा करवा दी। घोषणा सुनकर कई उम्मीदवार आएं लेकिन कठिन परीक्षाओं से गुजरने के बाद उनमें से केवल तीन ही उम्मीदवार शेष बचे। 

राजा को तीन में से किसी एक का चुनाव करना था। उन्होंने तीनों को अपने पास बुलाया और उनसे अलग-अलग एक ही सवाल पूछा, ‘‘मान लो मेरे कपड़े में और तुम्हारे कपड़े में एक साथ आग लग जाएं तो तुम क्या 
करोगे?’’




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पहला उम्मीदवार बोला, ‘‘महाराज मैं पहले आपके कपड़े की आग बुझाऊगा, फिर अपनी।’’

दूसरा बोला, ‘‘महाराज, मैं पहले अपने कपड़े की आग बुझाऊगा।’’

तीसरा बोला, ‘‘महाराज मैं एक हाथ से अपने कपड़े की और दुसरे हाथ से आपके कपड़े की आग बुझाऊंगा।’’



तीसरे की बात सुनकर राजा खुश हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘पहले वाला उम्मीदवार को पता होना चाहिए कि अपनी जरूरत को नजर अंदाज करने वाला नादान है। दूसरे उम्मीदवार को मालूम होना चाहिए सिर्फ अपनी भलाई करने वाला स्वार्थी हैं और जो व्यक्तिगत जिम्मेदारी निभाते हुए दूसरे की भलाई करता है वही बुद्धिमान है। 

राजा ने तीसरे उम्मीदवार को अपना मंत्री नियुक्त कर लिया। 

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सोने का कंगन


बहुत पुरानी बात है। एक जंगल में एक शेर रहता था। वह काफी बूढ़ा हो गया था। 

एक दिन उसे कहीं से एक सोने का कंगन मिला। वह सोने का कंगन लेकर एक रास्ते के किनारे पर बैठ गया।

तभी वहां से एक राहगीर निकला। राहगीर को देखकर शेर बोला, ‘‘हे पथिक यह सोने का कंगन मुझसे दान लेकर जाओ।’’



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सोने का कंगन देखकर राहगीर के मन में लालच आ गया, लेकिन उसे शेर से डर भी लग रहा था। उसने मन ही मन सोचा, ‘किसी बहुमूल्य चीज को पाने के लिए कुछ तो जोखिम उठानी ही पड़ती है।’



उसने शेर से कहा, ‘‘मैं कैसे यकीन कर लूं कि तुम मुझे नहीं खाओगे।’’


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शेर बोला, ‘‘मैं बूढ़ा, लाचार मरणे से पहले मैं कुछ दान करना चाहता हूं। ताकि अपने जीवन में किए सारे पाप धुल जाएं।’’ 

राहगीर को शेर की बातों पर यकीन हो गया। जैस ही वह कंगन लेने शेर के पास पहुंचा शेर ने उसे पकड़कर खा लिया।

सोने के कंगन के लालच में आकर उस व्यक्ति ने अपनी जान गवां दी।

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शिल्पी की ईमानदारी 


राजा को सुंदर-सुंदर इमारतें बनाने का बहुत शौक था। उसके राज्य में दूर-दूर से कुशल शिल्पियां आकर काम करते थे। राजा उन शिल्पियों का सम्मान भी करता था। 

एक दिन राजा के पास एक वृद्ध शिल्पी आया। उसने राजा को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘महाराज, मैंने जीवनभर आपके राज्य की सेवा की है, बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई हैं, अब मैं बुढ़ा हो गया हूं और अपने गांव जाकर आराम से रहना चाहता हूं।’’



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राजा ने कहा, ‘‘तुम महान शिल्पी हो, मैं चाहता हूं कि अपने गांव वापस जाने से पहले मेरे लिए एक सुंदर भवन बना दो।’’



शिल्पी राजा की ख्वाहिश कैसे टाल सकता था। उसने राजा के लिए एक महल बनाने का काम आरम्भ किया, लेकिन उसका मन काम में नहीं लग रहा था। उसने जैसे तैसे राजा के लिए एक महल तैयार कर दिया। काम खत्म होने परवह फिर से राजा के पास जाकर अपने गांव जाने की इच्छा जाहिर की। राजा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं। इसलिए यह महल मैं तुम्हें उपहार स्वरूप दे रहा हूं।’’

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राजा की बात सुनकर शिल्पी बहुत शर्मिदा हुआ, क्योंकि उसने पूरी ईमानदारी से काम नहीं किया था। उस महल में कई खामियां रह गई थी। उसने अपने कार्य के लिए राजा से क्षमा मांगी और उनके लिए एक अद्वितीय महल बनाने में जुट गया।




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गधे का काम


नंदू नाम का एक धोबी था। उसके घर पर एक कुत्ता और एक गधा था। नंदू गधे से खूब मेहनत करवाता था। 

गधा अब काफी बूढ़ा हो गया था। उससे पहले जितना काम नहीं कर पाता था। यह देखकर नंदू ने सोचा, अब इस गधे को बेच कर दूसरा गधा ले लेना चाहिए।



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इसी विचार से एक दिन नंदू ने गधे को अच्छे से नहलाकर साफ किया और उसे बेचने के लिए बाजार जाने की तैयार करने लगा।

गधे के चले जाने की खबर सुनकर कुत्ता उदास हो गया, लेकिन गधे के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।



यह देखकर कुत्ते ने गधे से पूछा, ‘‘मालिक तुम्हें बेचने के लिए बाजार ले जा रहा हैं, यह जानकर भी तुम उदास नहीं हो।’’


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गधे ने कहा, ‘‘इसमें उदास होने जैसे कौन सी बात हैं। मुझे जो भी खरीद कर ले जाएगा, वह नया मालिक भी तो मुझ से बोध उठाने का ही काम लेगा। फिर इसमे दुख या खुश होने जैसी कौन सी बात हैं। इस लिए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मुझे रखें या बेच दें। हम जहां भी रहेंगे, हमें वहीं काम करना है जो प्रकृति ने हमारे लिए निश्चित किया है।


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