moral stories in hindi | मुर्ति |
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बहुत पुरानी बात है। एक नगर का सबसे अमीर सेठ एक विशाल मंदिर का निर्माण करवा रहा था। मंदिर का काम-काज कैसा चल रहा है यह देखने के लिए वह एक दिन मंदिर में आया।
मंदिर अभी भी पूरा नहीं बना था। सेठ ने देखा, एक खूबसूरत मुर्ती रखी हुई हैं। उसके पास ही एक शिल्पी हुबहू वैसी ही एक दुसरी मुर्ति बनाने में मग्न है।
उसे अपने कार्य में मग्न देख सेठ ने उससे पूछा, ‘‘यहां तो एक मुर्ति पहले से ही बनी हुई हैं। फिर यह दूसरी मुर्ति क्यों?’’
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शिल्पी बोला, ‘‘क्योंकि यह मुर्ति क्षतिग्रस्त हो गई हैं।’’
सेठ ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे तो इसमें कोई दोष दिखाई नहीं दे रहा है।’’
शिल्पी बोला, ‘‘इसके नाक पर खरोंच आ गई।’’
सेठ ने देखा मुर्ति के नाक के ऊपर मामूली सी खराबी थी। उन्होंने पूछा, ‘‘इसे कहां, लगाओगे?’’
शिल्पी बोला, ‘‘वहां सामने स्तंभ पर।’’
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सेठ ने कहां , ‘‘तुम बेवजह दुसरी मुर्ति बना रहे हो। उतनी ऊंचाई पर इस मुर्ति को रखने से उसकी त्रुटि दिखाई नहीं देंगी।’’
शिल्पी बोला, ‘‘लेकिन मुझे तो दिखाई देंगी। मैं दुसरों से छुपा सकता हूं लेकिन अपने आप से उस गलती को कैसे छुपाऊं।’’
शिल्पी की बात सुनकर सेठ आश्चर्य से उसे देखने लगा।
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