प्रेरक कहानी | सोने की कुल्हाड़ी | motivational story in hindi | Apeksha Mazumdar
लकड़हारा उन झाड़ियों को कुल्हाड़ी से काटने लगा, लेकिन तभी उसके हाथ से कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। लकड़हारा उदास हो गया। उसे तैरना नहीं आता था। अब वह नदी से अपनी कुल्हाड़ी कैसे बाहर निकाले। कुल्हाड़ी ही उसकी आजीविका का साधन थी। वह वही बैठकर रोने लगा।
तभी नदी से जलदेवी बाहर आई और उसने लकड़हारे से रोने का कारण पूछा।
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लकड़हारे ने जलदेवी से अपनी कुल्हाड़ी वापस मांगी।
जलदेवी पानी के अंदर से एक चांदी की कुल्हाड़ी लाकर बोली, ‘‘क्या यह कुल्हाड़ी तुम्हारी है?’’
लकड़हारा बोला, ‘‘यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं हैं।’’
जलदेवी दोबारा एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर आई, लकड़हारे ने उसे भी लेने से इंकार कर दिया।
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जलदेवी बोली, ‘‘इसे ही रख लो।’’
लकड़हारा बोला, ‘‘देवी, यह सोने की कुल्हाड़ी है। इससे मैं लकड़ी कैसे काटूगा। आप मुझे मेरी लोहे की कुल्हाड़ी वापस दे दीजिए।’’
लकड़हारे की ईमानदारी से जलदेवी खुश हो गई और उसने लकड़हारे को तीनों कुल्हाड़ी दे दी।
लकड़हारा खुशी-खुशी अपने घर चला गया।
उसके पड़ोसी को जब इस बात का पता चला तो उसके मन में लालच आ गया। वह दुसरे दिन सुबह उठ कर अपनी कुल्हाड़ी लेकर नदी किनारे पहुंच गया।
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उसने जानबुझ कर अपनी कुल्हाड़ी नदी पर फैंक दी और जोर-जोर से रोने लगा।
उसके रोने की आवाज़ सुनकर जलदेवी प्रकट हुई। उसने रोने का कारण पूछा, तो उस व्यक्ति ने अपनी कुल्हाड़ी वापस मांगी।
जलपरी ने लोहे की कुल्हाड़ी उसे वापस लाकर दी तो वह बोला, ‘‘नहीं... नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं हैं।’’
जलपरी ने चांदी की कुल्हाड़ी दी तो वह व्यक्ति बोला, ‘‘मेरी रत्नजड़ित सोने की कुल्हाड़ी थी।’’
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व्यक्ति का बात सुनकर जलदेवी समझ गई कि वह व्यक्ति लालची है। वह चली गई।
व्यक्ति सुबह से शाम तक बैठा-बैठा जलपरी के आने का इंतजार करता रहा, लेकिन जलदेवी दोबारा नहीं आई। व्यक्ति ने लालच में आकर अपनी लोहे की कुल्हाड़ी भी खो दी थी।
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