Laghu Katha | legal illegal | Dr. M.K. Mazumdar | Hindi Short Stories | लघुकथाएं |
Laghu Katha | लिगल-अनलिगल| Dr. M.K. Mazumdar | Hindi Short Stories | लघुकथाएं
‘लिगल-अनलिगल’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।
लिगल-अनलिगल
‘‘शर्मा जी ..... आपके लड़के का क्या हुआ?’’
‘‘अजी होना क्या वर्मा जी ..... एम.ए. करके दो साल से घर पर बैठा है। कोई उपाय हो तो बताइये।’’
‘‘.... ऐसा है कल सुबह मेरे पास भेंज देना .... मैं उसे डा. मुखर्जी के यहां रखवा दूगां।’’
शर्माजी की आंखें चमक उठी, ‘‘कितने रूपए मिल जाया करेंगा।’’
‘‘मिलेगा-विलेगा कुछ नहीं .....।’’ वर्मा ने हाथ नचा कर कहां, ‘‘डाक्टर के यहां छः महीने रहे ..... और कुछ डाक्टरी किताबों को देख ले ...... छः महीने में वह डाक्टर बन जायेगा ....... फिर नोट बटोरते रहना।’’
‘‘सो तो ठीक है, मगर .... यह तो अनलिगल होगा।’’
‘‘..... लिगल-अनलिगल में पड़े रहोगें तो आपका लड़का ता-उम्र इसी तरह पड़ा रह जायेगा .... आज कल गांव में अधिकतर डाक्टर ऐसे ही है ......।’’ इतना कह कर वर्मा जी ने साइकिल आगे बढ़ा दी।
शर्मा जी वही खडे़ होकर लिगल-अनलिगल में काफी देर तक सोचते रहे।...... more (1981)
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