Prerak Stories : inspirational short stories शुत्र को नहीं शत्रुता को खत्म करो |
Prerak Stories : inspirational short stories शुत्र को नहीं शत्रुता को खत्म करो
Prerak Stories : inspirational short stories शुत्र को नहीं शत्रुता को खत्म करो. संसार में कोई किसी का शत्रु नहीं होता है, केवल सोचने व समझने के नजरिए में फर्क होता हैं। प्यार और अपने अहम को खत्म करके शत्रुता की गहरी खाई को भी मिटाया जा सकता है। जब आपसी विचार मिल जाते है तब न शत्रु रहता है और न शत्रुता। शत्रु के साथ मित्रतापूर्वक व्यवहार करने से शत्रुता खत्म हो जाती हैं।
राजा शेरसिंह और चंपकवन के राजा में किसी तरह की आपसी दुश्मनी नहीं थी। लेकिन कुछ दिनों से दोनों वनांे के बीच में आपसी तनाव काफी बढ़ गया था।
Prerak Stories : inspirational short stories शुत्र को नहीं शत्रुता को खत्म करो short motivational stories in hindi with moral
राजा शेरसिंह शांतिप्रिय और आपस में मिलजुल कर रहना पसंद करते थे। वे युद्ध के खिलाफ थे, क्योंकि युद्ध में निर्दोष जानवर मारे जाते हैं और धन का भी काफी नुकसान होता हैं।
एक दिन गुप्तचरों ने राजा को सूचना दी कि चंपकवन के राजा उनके खिलाफ युद्ध की तैयारी कर रहा हैं और वह उन पर आक्रमण करने वाला है। यह खबर सुन कर राजा शेरसिंह परेशान हो गये।
राजा को अकेले पाकर उनके सेवक दीनू सियार, जग्गू भेड़िया और लगड़ा लगड़बधा उनके पास पहुंचे। तीनों मक्कार व दुष्ट थे। हमेशा दूसरों को परेशान करना व उन्हें बेवकूफ बनाकर ठग लेना इनका काम था।
तीनों मंत्री बहादुर चीता को पसंद नहीं करते थे, क्योंकि बहादुर चीता हमेशा उनकी योजना को नाकामयाब कर देता था। इसीलिए तीनों बहादुर को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। वे राजा के पास जाकर बहादुर के खिलाफ जहर उगलते रहते थे, लेकिन राजा शेरसिंह उनकी बातों पर विशेष ध्यान नहीं देते थे।
जग्गू भेड़ि़या बोला, ‘‘महाराज, हमें गुप्तचरों से सूचना मिली हैं कि बहादुर चीता, चंपक वन के राजा के साथ मिलकर सतपुड़ा वन की खुफिया जानकारी देता है और उन्हंे आपके खिलाफ खिलाफ भड़का रहा हैं।’’
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दीनू सियार बोला, ‘‘पहले-पहले तो हमें भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ था। इसीलिए हम तीनों ने बहादुर चीता की जासूसी की।’’
‘‘और हमने स्वयं अपनी आंखों से बहादुर चीता को कई बार चंपकवन के राजा से मिलते हुए देखा हैं।’’ लगड़ा लगड़बग्धा ने दीनू सियार की बात को पूरा करते हुए कहां।
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तीनों की बात सुनकर राजा शेरसिंह सोच में पड़ गये। राजा को चुप देखकर तीनों का साहस बढ़ गया। तीनो और नमक मिर्च लगा कर बहादुर चीता के खिलाफ कहने लगे।
‘‘महाराज, बहादुर चीता के कहने पर ही चंपकवन के राजा हम पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे हैं।’’ लगड़ा लगड़बग्धा ने कहां।
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‘‘लेकिन आज भी वह चंपकवन के राजा से ही मिलने गया हैं।’’ लगड़ा लगड़बग्धा ने कहां।
जग्गू भेड़िया बोला, ‘‘आपको हमारी बातों पर विश्वास नहीं है तो खुद ही जाकर देख लीजिए।’’
उन्होंने मन ही मन सोचा, ‘ये ठीक ही कह रहे हैं, इस वक्त बहादुर चीता को उनके पास होना चाहिए, जबकि वह यहां नहीं हैं। आजकल बहादुर चीता को उनके पास आने में देर भी हो जाती हैं।
राजा शेरसिंह जब भी बहादुर चीता से देर से आने का कारण पूछते तो वह कहता, ‘एक जरूरी काम कर रहा था। इसीलिए आने में देर हो गयी।’’
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बहादुर चीता को देखकर राजा शेरसिंह ने गुस्से से कहां, ‘‘हमें तुम्हारे खिलाफ खबर मिली हैं कि तुम पड़ोसी वन से मिले हुए हो और उन्हें हमारे खिलाफ भड़काया हैं।’’
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यह सुनकर मंत्री बहादुर चीता समझ गया कि जरूर किसी ने उसके खिलाफ राजा के कान भरें। इसीलिए राजा काफी गुस्से में हैं।
इस वक्त अपनी सफाई में कुछ कहने का मतलब हैं अपने जान से हाथ धोना। इस वक्त राजा काफी गुस्से में हैं, उनके सामने अपने को निर्दोष साबित करना उचित नहीं हैं, इसीलिए उसने कुछ नहीं कहां।
बहादुर चीता को खामोश देखकर राजा को विश्वास हो गया कि वह दोषी हैं, इसीलिए वह खामोश हैं। उसे खामोश देखकर राजा का गुस्सा सातवें स्थान पर पहुंच गया।
राजा शेरसिंह ने आदेश दिया, ‘‘अभी इसी वक्त तुम इस वन को छोड़कर चले जाओ। मुझे तुम पर कितना विश्वास था, लेकिन तुमने मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया है।
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इसकी सजा तुम्हें जरूर मिलनी चाहिए। तुम्हें इस वन से निकाला जाता है। आज के बाद तुम यहां कहीं भी दिखाई दिए तो तुम्हेे जेल में डाल दिया जाएगा।’’
राजा की आज्ञा मानकर बहादुर चीता वहां से चला गया। उसने मन ही मन फैसला किया कि उस पर लगाया गया आरोप जरूर मिटा कर रहेगा।
बहादुर चीता सीधे चंपक वन के राजा के पास पहुंचा। सतपुड़ा वन के मंत्री को अपने सामने देखकर चंपक वन के राजा ने उसकी हिम्मत और बहादुरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘इस आपात समय में जहां दोनों वन एक दुसरे की खिलाफ हैं। तुमने यहां आकर अपने साहस का परिचय दिया हैं।’’
बहादुर चीता बोला, ‘‘महाराज, मैं यहां शांति संदेश लेकर आया हूं। हमारे राजा आपसे युद्ध नहीं करना चाहते हैं। वे तो शांति और आपसी प्रेम से रहना चाहते हैं।’’
चंपकवन के राजा बोला, ‘‘हम भी कहां, युद्ध चाहते हैं। हमारे गुप्तचरों ने सुचना दी कि सतपुड़ावन बड़ी सेना लेकर हम पर आक्रमण करने वाला हैं।’’
महाराज, हमारे गुप्तचरों ने भी राजा को ठीक यही सूचना दी थी। इसका मतलब सतपुड़ावन और चंपकवन युद्ध नहीं करना चाहता हैं।’’ बहादुर चीता ने खुश होते हुए बोला।
‘‘लेकिन यह बात कैसे सिद्ध हो सकती हैं?’’ राजा ने कहां।
‘‘आप सतपुड़ा वन के राजा शेरसिंह के लिए कुछ तोहफे अपने मंत्री के हाथ से भेंजवा दें। यदि उन्होंने स्वीकार कर लिया तो समझ जाना कि वह आपसे दोस्ती करना चाहते हैं।’’
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‘‘दोस्ती की पहल करने से हमारी बेइज्जती नहीं होगी।’’ राजा ने कहां।
‘‘दोस्ती करने में बेइज्जती कैसी? वैसे भी यह पहल तो हमारे राजा शेरसिंह ने मुझे यहां भेंज कर अपनी ओर से की हैं।’’ बहादुर चीता ने कहां।
चंपक वन के राजा ने अपने मंत्री तेजा तेदुंआ के द्वारा सतपुड़ा वन के राजा शेरसिंह के लिए कीमती तोहफे और अपनी दोस्ती का संदेश भेंजवाया।
चंपकवन के मंत्री तेजा तेदुंआ को तोहफो और संदेश के साथ देखकर राजा शेरसिंह ने उसे खुशी-खुशी ग्रहण कर लिया और अपनी ओर से उन्होंने चंपकवन के राजा को अपने यहां आने का निमंत्रण दे दिया और बहादुर चीता को वापस सतपुड़ा वन लौट आने के लिए कहां।
शिक्षा - inspirational short stories शुत्र को नहीं शत्रुता को खत्म करो
इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि
- प्यार और अपने अहम को खत्म करके शत्रुता की गहरी खाई को भी मिटाया जा सकता है। जब आपसी विचार मिल जाते है तब न शत्रु रहता है और न शत्रुता।
- संसार में कोई किसी का शत्रु नहीं होता है, केवल सोचने व समझने के नजरिए में फर्क होता हैं।
- विचारों में फर्क होता है और यही फर्क आपसी रंजिश को जन्म देता है। यदि प्यार से अपनेपन से आप अपने शत्रु के विचार को बदल देते है तो दुश्मनी अपने आप खत्म हो जाती हैं।
- शत्रु के साथ मित्रतापूर्वक व्यवहार करने से शत्रुता खत्म हो जाती हैं।
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