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Prerak Kahani : विपत्ति के समय धैर्य नहीं खोना चाहिए

विपत्ति व परेशानी के समय अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए और उससे बचने का उपाय सोचना चाहिए। जीवन में आने वाली बाधाएं हमें संघर्ष करने, मुसीबतों से लड़ने और आगे बढ़ने का हौसला देती हैं। बाधाओं से घबराने की बजाय उसका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करना चाहिए, क्योंकि दृढ़ इच्छा शक्ति हमेशा जीतती हैं और बाधाएं हारती हैं।

राकेश शर्मा ऑफीस जाते समय अपने बेटे बंटी को कार द्वारा स्कूल सेे कुछ दूर एक मोड़ के पास छोड़ कर स्वयं वहां से ऑफीस चले जाते थे। 



एक दिन बंटी कार से उतर कर कुछ ही कदम चला था कि उसके पास एक कार आकर रूकी। कार की पिछली सीट पर बैठे एक व्यक्ति ने उसे एक विजिटिंग कार्ड दिखाते हुए पूछा, ‘‘बेटा ... यह कहां पर हैं?’’

बंटी ने कार्ड को गौर से पढ़ा। उस पर डिजनी शोरूम का पता लिखा था। बंटी अपने पापा के साथ उस शो रूम में कई बार खिलौने खरीदने गया था, इसलिए उसे उस शोरूम का रास्ता अच्छी तरह से पता था।

बंटी ने उस व्यक्ति को रास्ता समझाने की कोशिश की, लेकिन उस व्यक्ति को ठीक से समझ में नहीं आया। 
उसने कहां, ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है। पिछले एक घंटे से हम ऐसे ही चक्कर लगा रहे है ... प्लीज, तुम हमें वहां तक पहुंचा दो।’’ कार वाले व्यक्ति ने कहा।

‘‘मुझे स्कूल पहुंचना है.... देर हो जाएगी।’’ बंटी ने घंड़ी देखते हुए कहा।

‘‘देर नहीं होगी.... तुम हमें वहां तक पहुंचा दो, मैं तुम्हें वापस स्कूल तक कार से छोड़ दूंगा।’’ अब तक चुप बैठे ड्राइवर ने कहा।

‘‘हां...हां, मेरा ड्राइवर तुम्हें स्कूल तक छोड़ जाएगा।’’



‘‘ठीक है जब आप मुझे समय पर स्कूल छोड़ देने की बात कर रहे है तो मैं आपको वहां तक पहुंचा देता हूं।’’ कहते हुए बंटी कार में बैठ गया।

बंटी के कार में बैठते ही कार तेजी से सड़क पर भागने लगी। बंटी कुछ समझ पाता, इसके पहले ही कार में बैठे व्यक्ति ने एक रूमाल उसके नाक पर लगा दिया। बंटी बेहोश हो गया।

बंटी को जब होश आया तो उसने अपने आपको एक पुराने गंदे धूल भरे कमरे में पाया। उसने कमरे को गौर से देखा। उसे कमरा पुराने जमाने के मकान का हिस्सा जैसा लगा। पूरा कमरा धूल से भरा था। दीवारों पर मकड़ियों ने जाले बना रखें थे।

कमरे में एक पुरानी टेबल, कुर्सी व स्टुल पड़ा हुआ था। चारपायी पर एक फटी पुरानी गुदड़ी बिछी हुई थी। उसका स्कूल बैग भी टेबल के ऊपर रखा हुआ था। वह कमरे में इधर-उधर देख रहा था। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक हट्टा-कट्टा बदसूरत-सा व्यक्ति कमरे के अंदर आया।

बदसूरत व्यक्ति ने बंटी को धमकाते हुए कहा, ‘‘कोई होशियारी मत दिखाना .... वरना यहीं मार कर दफन कर दूंगा। रात में हम तेरे पिता से फिरौती की रकम लेकर तुझे छोड़ देगें।’’ इतना कह कर वह व्यक्ति वहां से चला गया।

बंटी समझ गया बदमाशों ने पैसें के लिए उसका अपहरण कर लिया है। इस परिस्थिति में उसे हिम्मत से काम लेना होगा। 

उस कमरे में दरवाजे के अलावा कोई खिड़की नहीं थी। केवल एक छोटा-सा झरोखा (रोशनदान) छत के पास बना हुआ था। बंटी ने टेबल को खींच कर झरोखे के सीध में दीवार के पास ले गया। उसने टेबल पर कुर्सी और कुर्सी के ऊपर स्टूल रखकर उस पर चढ़ गया।

उस छोटे से झरोखे से उसने बाहर का नजारा देखा। उसे झुग्गी झोपड़ी और गंदा नाला दिखायी दिया। एक जगह उसे बड़े से र्बोड पर आर.के. लिखा हुआ दिखायी दिया। तभी उसे मंदिर की घंटी की आवाज सुनायी दी। घंटी की आवाज से ऐसा लगा मंदिर यहीं कहीं आस-पास में ही है।

वह स्टूल से नीचे उतरा। अपने स्कूल बैग से कापी और स्केच पेन निकाला। कापी के पन्नों पर उसने लिखा, ‘मेरी मदद कीजिए... मैं झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में एक पुराने घर में बंद हूं। घर के आस-पास कोई मंदिर है और मकान के आगे या पीछे एक बड़ा सा बोर्ड लगा है, जिस पर आर. के. लिखा है।’

इन बातों को लिखकर कापी के पन्नों का हवाई जहाज बनाकर वह एक-एक करके झरोखे से उड़ाने लगा।

इधर शाम तक बंटी स्कूल से घर नहीं लौटा तो उसके पिता राकेश शर्मा व मां रंजना शर्मा काफी परेशान हो गये। स्कूल की छुट्टी होने के बाद बंटी बस से ही लौटता था, क्योंकि उसके पिता उसे लेने नहीं जाते थे।

राकेश शर्मा ने स्कूल जाकर बंटी के बारे में पूछताछ की तो उन्हें पता चला कि बंटी तो स्कूल आया ही नहीं था। यह सुनकर उन्हें बड़ा आश्र्चय हुआ, क्योंकि उन्होंने स्वयं उसे स्कूल के लिए छोड़ा था। फिर बंटी कहा चला गया। उन्हें घबराहट होने लगी। तभी उनके मोबाइल की घंटी बज उठी। उन्होंने फोन रिसीव किया। 

दूसरी ओर से आवाज़ आई, ‘‘हमने तुम्हारे बेटे का किडनेप कर लिया है। पांच लाख मिलने पर तुम्हारे बेटे को छोड़ देगें। पुलिस में खबर करने पर तुम्हारे बेटे की लाश भी नहीं मिलेगी...... समझे न। रूपये पहुंचाने का स्थान बाद में बतायेगें।’’

राकेश शर्मा फोन पर ‘‘हलो.....हलो।’’ कहते ही रह गए।   उधर से फोन कट चुका था।  

अपहरणकत्र्ता की बात सुनकर वह काफी घबरा गए, लेकिन तुरन्त ही उन्होंने अपने आपको संभाला और कुछ सोचते हुए वहां से सीधे थाने पहुंचे।

इस्पेक्टर राज ने राकेश शर्मा की पूरी बात सुनी और बंटी के गुम होने की रिर्पोट दर्ज करवा ली। अभी दोनों बैठे बातें कर ही रहे थे कि तभी वहां एक व्यक्ति इंस्पेक्टर राज के पास आया।

‘‘क्या काम है?’’ इंस्पेक्टर राज ने पूछा।

उस व्यक्ति ने कागज के टुकड़े इस्पेक्टर की ओर बढ़ाते हुए कहां, ‘‘साहब, यह रास्ते में पड़े हुए मिले हैं।’’
इस्पेक्टर राज ने उसे घुरते हुए पूछा, ‘‘यह क्या हैं?’’

‘‘साहब, मैं अपने घर की ओर जा रहा था। तभी मैंने हवा में उड़ते हुए कागज के बहुत सारे हवाई जहाज नीचे गिरते देखे। एक साथ इतने सारे कागज के हवाई जहाज को हवा में उड़ते हुए नीचे गिरते देखकर मेरे मन में शंक हुआ। 

 
मैंने एक कागज का हवाई जहाज उठा कर देखा। उसमें लिखा था, मेरी मदद कीजिए...... यह पढ़कर मैंने दुसरे हवाई जहाजों को भी उठा कर देखा। उन पर भी यहीं बातें लिखी हुई थी। इसलिए मैं इसे लेकर आपके पास आया हूं।’’

इंस्पेक्टर राज ने कागज पर लिखी बातों को गौर से देखा। उन्होंने राकेश शर्मा को कागज दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या आप अपने बेटे की राइटिंग पहचान सकते है।’’

राकेश शर्मा ने हैंड राइटिंग पहचानते हुए कहां, ‘‘हां, यह बंटी की ही हैंडराइटिंग है .... इंस्पेक्टर साहब, जल्दी कुछ कीजिए ..... मेरे बच्चे को बचा लीजिए।’’

‘‘मिस्टर शर्मा, आप धीरज रखिए। हम जल्दी ही कार्यवाही करेंगे।’’

इस्ंपेक्टर राज ने कागज लाने वाले व्यक्ति से पूछा, ‘‘यह कागज तुम्हें जहां से मिले हैं, हमें वहां ले चलो।’’

इंस्पेक्टर राज पुलिस टीम के साथ उस स्थान पर पहुंचे। वहां आस-पास खोजबीन करने पर उन्हें आर. के. लिखा हुआ बोर्ड मिल गया। बोर्ड के आस-पास देखने पर उन्हें सड़क के दुसरी ओर पुराना एक तीन मंजिला मकान का पिछला हिस्सा दिखायी दिया।


पुलिस ने उस मकान को चारों ओर से घेरा बंदी करके तीसरी मंजिल के एक कमरे में बंद बंटी को छुड़ा लिया। बंटी का अपहरण करने वाले चारों बदमाशों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 

बंटी की सूझबूझ ने उसे बदमाशों के चंगुल से छुड़ा लिया।

शिक्षा

इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि

  •  विपत्ति व परेशानी के समय अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए और उससे बचने का उपाय सोचना चाहिए।
  •  जीवन में आने वाली बाधाएं हमें, संघर्ष करने, मुसीबतों से लड़ने और आगे बढ़ने का हौसला देती हैं। 
  •  बाधाओं से घबराकर अपनी हार मान कर चुपचाप बैठने की बजाय उससे मुकाबला करने के बारे में सोचना चाहिए।
  •  बाधाओं से घबराने की बजाय उसका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करना चाहिए, क्योंकि दृढ़ इच्छा शक्ति हमेशा जीतती हैं और बाधाएं हारती हैं।

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