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Prerak Kahani : अन्याय का विरोध करना सीखें
सतपुड़ावन में सब कुछ अच्छा था। बस उनकी एक परेशानी थी कि उनके वन के बीच से एक नदी बहती थी और जानवरों को शहर जाने के लिए नाव का इस्तेमाल करना पड़ता था।
नदी पर लप्पू लोमड़ी की ही नाव चलती थी।
लप्पू काफी बदमाश था। राजा शेरसिंह ने नदी पार कराने के लिए नाव का किराया 10 रूपया निश्चित किया था, जबकि लप्पू नाव का 50 रूपए किराया वसूलता था।
जो भी इसका विरोध करता, वह उसे नदी में फेक देने की धमकी देता था। डर के मारे सभी उसे 50 रूपए किराया दे देते थे।
एक दिन चमकू खरगोश को किसी काम से नदी के उस पार जाना था।
वह नाव में बैठ गया। जब नाव मझधार में पहुंची तो लप्पू सब से किराया वसूल करने लगा।
लप्पू लोमड़ी ने चमकू से 50 रूपए किराया मांगे तो चमकू ने इसका विरोध किया।
चमकू ने कहां, ‘‘जब राजा शेरसिंह ने नाव का किराया 10 रूपए निश्चित किया हैं तो मैं अधिक किराया क्यों दूं।’’
यह सुनकर लप्पू ने कहा, ‘‘ओये, ज्यादा सयाणा मत बन जितना किराया मांगा हैं, चुपचाप दे दे, नहीं तो उठाकर नदी में फेंक दूंगा।’’
चमकू ने देखा नाव में बैठे किसी ने भी लप्पू का विरोध नहीं किया। उन्होंने चुपचाप उसे 50 रूपए दें दिए।
चमकू समझ गया यदि उसने इस वक्त लप्पू से अधिक बहस की तो वह उसे गहरे पानी में फेंक देगा। उसने भी 50 रूपये निकाल कर दे दिए।
घर लौटकर चमकू ने अपने सभी दोस्तों को बुलाया और उसे लप्पू लोमड़ी द्वारा नाव का अधिक किराया वसूल करने की बात बतायी।
चमकू की बात सुनकर सभी ने एक साथ कहा, ‘‘यह कौन सी नई बात है। लप्पू काफी दिनों से ऐसा कर रहा है।’’
‘‘हम सबको मिलकर इसका विरोध करना चाहिए।’’ चमकू ने कहा।
‘‘हम छोटेछोटे जानवर उस खतरनाक लोमड़ी का विरोध कैसे कर सकते हैं?’’ एक ने कहा।
‘‘विरोध करके हमें मरना है क्या? दूसरे ने कहां।
‘‘वन के और भी जानवर उस नाव से जाते हैं। वे भी अधिक किराया देते हैं। उनमें से कोई विरोध नहीं कर रहा है फिर हम क्यों विरोध करें?’’ किसी ने कहा।
इस पर चमकू ने कहा, ‘‘कौन क्या करता है या नहीं करता है, इस बारे में हमें नहीं सोचना है। हम क्या कर सकते हैं इस बारे में सोचना है।’’
‘‘मगर हम विरोध कैसे करेंगे?’’
‘‘हम सब मिलकर उसका विरोध करेंगे। इसके लिए मेरे पास एक आइडिया है।’’ चमकू ने योजना सभी को बता दी।
चमकू की योजना सभी को पसंद आ गई। वे सभी उसका साथ देने के लिए तैयार हो गए।
अगले दिन खरगोशों का झुंड नदी किनारे पहुंच गया।
वे सभी उस पार जाने के लिये नाव पर बैठ गए। नाव खरगोश से पूरा भर गया।
ढ़ेर सारी सवारी मिलने पर लप्पू काफी खुश हो गया। आज उसकी अच्छी कमायी होगी, यह सोचते हुए उसने नाव आगे बढ़ा दी।
नाव जैसे ही मझधार में पहुंची। लप्पू ने अपने आदत के अनुसार किराए मांगने लगा।
सभी खरगोशों ने एक साथ उसका विरोध करते हुए चिल्लाने लगे, किराया 10 रूपये है, हम 10 रूपये ही देंगे।
‘‘जो 50 रूपए नहीं देगा। मैं उसे नदी में फेंक दूंगा।’’ लप्पू ने डराते हुए कहां।
इतना कहना था कि सभी खरगोशों ने मिल कर लप्पू को पकड़ा लिया।
चमकू ने कहां, ‘‘देखते हैं तू हमें कैसे फेंकता है? एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी आज हम तुझे ही नदी में फेंक देगें।’’
जैसे ही सभी उसे पकड़ कर नदी में फेंकने लगे तो उसने डरते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो मुझसे गलती हो गयी।’’
लप्पू समझ गया आज सारे खरगोश उसका विरोध करने की तैयारी से आएं है। यदि उसने उनकी बात नहीं मानी तो उसे गहरे पानी में फेंक देंगे।
‘‘अभी तो तुम्हारी जान अटकी है इसलिये कम किराया लेने की बात कह रहे हो, बाद में दूसरांे से अधिक किराया वसूल करने लगोगे।’’ चमकू ने कहा।
‘‘नहीं अब मैं कभी किसी से अधिक किराया वसूल नहीं करूंगा। आज सारे खरगोशों ने मिलकर मेरा विरोध किया है, कल दूसरे जानवर भी मिल कर विरोध कर सकते हैं।’’ लप्पू ने कहा।
‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम बहुत जल्दी ही सब कुछ समझ गए।’’ चमकू ने कहां।
उस दिन से लप्पू सुधर गया। उसने अधिक किराया लेना छोड़ दिया।
चमकू ने दिखा दिया अन्याय का सब मिल कर विरोध करें तो उससे छुटकारा जरूर मिलता है।
शिक्षा -
इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि
- अन्याय और अत्याचार का खुल कर विरोध करना चाहिए।
- जो व्यक्ति चुपचाप अन्याय होते हुए देखते हैं वे भी उतने ही बड़े दोषी है जितना की अन्याय करने वाला।
- अत्याचार या अन्याय को शुरू में ही रोक दिया जाएं तो उसे पनपने का मौका नहीं मिलता है।
- यदि अन्याय होते हुए देखकर आप अपनी आंखेंमूंद लेते हैं तो निश्चित है कि कल यह आपके साथ भी घटित हो सकता हैं। तब आपका साथ देने के लिए कोई नहीं होगा।
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