स्वयं को श्रेष्ठ समझकर दूसरों का अपमान न करें | प्रेरक कहानी |
स्वयं को श्रेष्ठ समझकर दूसरों का अपमान न करें | प्रेरक कहानी
प्रेरक कहानी, स्वयं को श्रेष्ठ समझकर दूसरों का अपमान न करें कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की गई है कि व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना ही धनवान क्यों न हो, कितना ही ज्ञानी क्यों न हो, कितना ही विशिष्ठ क्यों न हो, कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो उसे हमेशा यह याद रखना चाहिए कि दुनिया में वहीं अन्तिम व्यक्ति नहीं हैं।
एक दिन की बात हैं। फल की दुकान में कई तरह के फल रखें हुये थे। सभी फल अपने आप को सर्वश्रेष्ठ जताने की कोशिश में लगे हुए थे।
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स्वयं को श्रेष्ठ समझकर दूसरों का अपमान न करें | प्रेरक कहानी |
फलों के आपसी आरोप-प्रत्यारोप से वहां का माहौल कौलाहलपूर्ण हो गया था। नागपुर से आंए संतरे ने चीखते हुए सभी को चुप रहने के लिए कहा।
संतरे की आवाज सुनकर सभी फल चुप हो गए।
फलों के चुप होते ही संतरा बोला, ‘‘मैं तब से तुम सभी की बक-बक सुन रहा हूं। तुम में से कोई बड़ा नहीं है। मैं सबसे बड़ा हूं। फलों में मेरी अलग पहचान है। मुझे में ‘विटामिन सी’ सबसे अधिक पाया जाता हैं, इसीलिए लोग मुझे अधिक पसंद करते हैं।’’
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भुसाबल से आएं केले ने संतरे को परे हटाते हुए कहा, ‘‘चुप रहो, तुम बहुत बोल चुके, अब मेरी सुनो।
तुम नागपुर की पहचान हो तो मैं भी भुसाबल की पहचान हूं। छोटे शिशु से लेकर सौ साल के बूढ़े सभी मुझे खाना पसंद करते हैं। ‘कैल्शियम’ से भरपूर होने की वजह से मैं हडिड्यां मजबूत करता हूं, इसलिए मैं सर्वश्रेष्ठ हूं।’’
केले की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि मुजफ्फरपुर की लीची उछल कर सामने आयी।
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उसने मटकते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों में कोई भी श्रेष्ठ नहीं हैं। मैं सर्वश्रेष्ठ हूं, क्योंकि स्वाद और पौष्टिकता में मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। लोग मुझे सबसे अधिक पसंद करते हैं।’’
वह इतना ही कह पायी थी कि उसके सामने देहरादून की लीची खड़ी हो गयी।
उसने तुनककर कहा, ‘‘मैं देहरादून की लीची हूं। मेरी अपनी अलग पहचान है। मैं आकर में तुमसे बड़ी हूं। अधिक स्वादिष्ठ होने के कारण विदेशों में भी मेरी मांग हैं।’’
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देहरादून की लीची की बात सुनकर मुज्फ्फपुर की लीची चीढ़ गयी। वह देहरादून की लीची पर झपड़ पड़ी। दोनों में गुंथागुंथी शुरू हो गयी।
स्ट्राबेरी ने अपनी आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘अरे, हम सभी यहां बिकने के लिए जमा हुए है। हमें किसी खास जगह से क्या लेना-देना।’’
स्ट्राबेरी की बातों पर ध्यान दिए बिना मुजफ्फपुर की लीची और देहरादून की लीची लड़ती रही।
उन दोनों को लड़ते देखकर होशंगाबाद के तरबूज ने कहा, ‘‘कोई इन दोनों को तो रोकों?’’
किसी भी फल का साहस नहीं हुआ कि वह आगे बढ़ कर उन दोनों को रोके।
आखिर में जब दोनों लड़ते-लड़ते थक गयी तो एक कोने में जाकर बैठ गयी। दोनों का बदन पूरी तरह से छिल गये थे। उसमें से रस टपक रहा था।
इलाहबाद के अमरूद, गोवा के काजू और नाशिक से आए अंगूर अपनी जगह पर खड़े होकर एक साथ बोल पड़े, ‘‘मैं सर्वश्रेष्ठ हूं...... मैं सर्वश्रेष्ठ हूं।’’
कटहल ने तीनो को चुप कराते हुए कहा, ‘‘अरे भाई एक-एक करके बोलो। तभी तो कुछ समझ में आएगा।’’
कटहल की बात सुनकर अमरूद, काजू और अंगूर कुछ बोलते इसके पहले ही कश्मीरी सेब खड़ी होकर बोली, ‘‘उन सबको छोड़ो। वह तीनों गये गुजरे है। फलों में मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। मेरे स्वाद व पौष्टिकता के बारे में मुझे स्वयं बताने की जरूरत नहीं, क्योंकि इस बारे में सभी डाक्टर कहते है कि रोज एक सेब खाओ और जिंदगी भर स्वस्थ रहो। मेरी खूबसूरती के क्या कहने ..... सुंदर स्त्री के गालों को कश्मीरी सेब की उपमा दी जाती है। अब आप लोग तो मानते हो न मैं सभी फलों में सर्वश्रेष्ठ हूं।’’
इतने में वहां एक ग्राहक आया। वह फलों को उलट-पलट कर दखने लगा। दुकानदार बोला, ‘‘साहब, सभी फल ताजे और अच्छे हैं। आपको कौन-सा फल दे दूं।’’
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‘‘अरे भाई, मौसमी फल ही स्वास्थ्य और पौष्टिकता की दृष्टि से अधिक फायदेमंद होते है, इसीलिए सभी फल मौसम के हिसाब से श्रेष्ठ हैं।’’ फलों को देखते हुए ग्राहक ने कहां। ग्राहक की बात सुनकर सभी फल एक-दुसरे का मुंह देखने लगे।
शिक्षा:- स्वयं को श्रेष्ठ समझकर दूसरों का अपमान न करें | प्रेरक कहानी
इस कहानी से शिक्षा मिलती हैं कि
- सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ विशेष गुण होते हैं। कभी भी अपने आप को दूसरों की तुलना में श्रेष्ठ समझकर उसका अपमान नहीं करना चाहिए।
- व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना ही धनवान क्यों न हो, कितना ही ज्ञानी क्यों न हो, कितना ही विशिष्ठ क्यों न हो, कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो उसे हमेशा यह याद रखना चाहिए कि दुनिया में वहीं अन्तिम व्यक्ति नहीं हैं।
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